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( ३०९ ) समान अन्य कोई प्रामाणिक साधन हमारे पास नहीं है। साहित्यिक दृष्टि मे यद्यपि विनय-पिटक का महत्त्व उतना नहीं दिखाया जा सकता क्योंकि उसका अधिकांश भाग नियमों का प्रज्ञापक है जो अत्यन्त नीरस ही हो सकता है। फिर भी 'धम्मचक्कपवत्तन सुत्त' आदि गम्भीर बुद्ध-प्रवचन भी यहाँ रक्खे हुए हैं, जो उसके ऐतिहासिक अंश के समान ही उसे महत्ता प्रदान करते हैं।
विनय-पिटक का विषय और उसका संकलन-काल
___ भिक्षु और भिक्षुणी संघ ही विनय-पिटक के एक मात्र विषय हैं, ऐसा कहा जा सकता है । वह बौद्ध संघ का संविधान और एक मात्र आधार है। बौद्ध संघ की व्यवस्था, भिक्षु और भिक्षुणियों के नित्य-नैमित्तिक कृत्य, उपसम्पदा-नियम, देसना-नियम, वर्षावास के नियम, भोजन, वस्त्र, पथ्य-औषधादि सम्बन्धी नियम, संघ के संचालन सम्बन्धी नियम, संघ-भेद होने पर संघ-सामग्री (संघ की एकता) सम्पादित करने के नियम, आदि नियम-समूह विनय-पिटक में विवृत किये गये हैं । इन सभी नियमों का प्रज्ञापन भगवान बुद्ध के द्वारा ही हुआ है, ऐमी बौद्ध संघ की सामान्यतः मान्यता है । विनय-पिटक का संकलन, जैसा हम ने प्रथम संगीति के विवरण में देखा है, धम्म या सत्त-पिटक के साथ-साथ प्रथम संगीति के अवसर पर ही हुआ। उसके प्रारम्भ में ही हम आर्य महाकाश्यप को कहते देखते हैं 'धम्मं च विनयं च सङ्गायेय्याम' अर्थात् "हम धम्म और विनय का संगायन करें" । अतः सत्त और विनय के संकलन-काल में कुछ ऐसा पूर्वापर स्थापित नहीं किया जा सकता, जैसा अक्सर पच्छिमी विद्वानों ने किया है । कुछ पच्छिमी विद्वानों (कर्न, पूसाँ आदि) ने विनय-पिटक को मत्त-पिटक से पूर्व का संकलन माना है, कुछ (फेंक आदि) ने उसके बाद का भी। किन्तु ये दोनों ही मन निराधार हैं । सुत्त और विनय में अनेक उपदेश समान हैं, विनय-सम्बन्धी अनेक उपदेश सुत्त-पिटक में भी मिलते हैं, और सत्त-पिटक के अनेक बद्ध-धर्म और बुद्ध-जीवन सम्बन्धी प्रकरण विनय-पिटक में मिलते हैं। दोनों की शैली प्राचीनता की सूचक है । अतः उन दोनों को समकालीन मानना ही अधिक युक्तिसंगत है । वैशाली की संगीति के अवसर पर विनय-सम्बन्धी कुछ विवादों का निर्णय हुआ था, अतः उसके आधार पर सम्भव है इस पिटक के रूप में कुछ