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राजा मर गया, फिर भी द्वारपाल को भय था कि अत्याचारी राजा यमराज के पास से कहीं लौट न आवे। आरामदूसक जातक (२६८) बन्दरों ने पौधों को उखाड़ कर उनकी जड़ें नाप-नाप कर पानी सींचा। कुटिदूसक जातक (३२१) बन्दर ने बये के सदुपदेश को सुन कर उसका घोंसला नोच डाला। बावेरु जातक (३३९.) बावेरु राष्ट्र में कौआ सौ कार्षापण में और मोर एक हजार कार्षापण में बिका। वानर जानक (३४२) मगरमच्छनी ने वन्दर का हृदय-मांस खाना चाहा। सन्धिभेद जात (३४९) गीदड़ ने चुगली कर सिंह और बैल को परस्पर लड़ा दिया, आदि आदि।
ऊपर के विवरण से स्पष्ट है कि जातक-कथाओं का रूप जन-साहित्य का है। उसमें पशु-पक्षियों आदि की कथाएँ भी हैं और मनुष्यों की भी। जातकों के कथानक विविध प्रकार के है । विन्टरनित्ज़ ने मुख्यतः सात भागों में उनका वर्गीकरण किया है। (१) व्यावहारिक नीति-सम्बन्धी कथाएँ (२) पशुओं की कथाएं (३) हास्य और विनोद से पूर्ण कथाएँ (४) रोमांचकारी लम्बी कथाएँ या उपन्यास (५) नैतिक वर्णन (६) कथन और (७) धार्मिक कथाएँ । वर्णन की शैलियाँ भी भिन्न-भिन्न हैं। विन्टरनित्ज़ ने इनका वर्गीकरण पाँच भागों में इस प्रकार किया है3 (१) गद्यात्मक वर्णन (२) आख्यान , जिमके दो रूप है (अ) संवादात्मक और (आ) वर्णन और संवादों का संमिश्रित रूप। (३) अपेक्षाकृत लम्बे विवरण, जिनका आदि गद्य से होता है किन्तु बाद में जिनमें गाथाएँ भी पाई जाती हैं (४) किसी विषय पर कथित वचनों का संग्रह और (५) महाकाव्य या खंड काव्य के रूप में वर्णन । वानरिन्द जातक, (५७) विळारवत जातक, (१२८) सीहचम्म जातक (१८९) मंसुमारजातक
१. इस दिग्दर्शन के लिए मैं भदन्त आनन्द कौसल्यायन के जातक-अनुवाद के तीनों खंडों की विषय-सूची के लिए कृतज्ञ हूँ। वहीं से यह सामग्री संकलित
की गई है। २. हिस्ट्री ऑव इंडियन लिटरेचर, जिल्द दूसरी, पृष्ठ १२५ ३. वहीं पृष्ठ १२४