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( २६९ ) बुद्ध-शिष्य को पराजित न कर मकने पर विमला प्रवजित हो गई। जहाँ तक इन भिक्षणियों के वंश या सामाजिक कुल-शील आदि का सम्बन्ध है, ये प्रायः सभी परिस्थितियों की थीं। उदाहरणतः खेमा, सुमना, गैला और सुमेधा कोगल और मगध के राजवंशों की महिलाएं थी । महाप्रजापती गोतमी, तिघ्या, अभिरूपानन्दा, मुन्दरी नन्दा, जेन्नी. सिंहा, तिप्या, धीरा, मित्रा, भद्रा, उपशमा और अन्यतरा स्थविरी, शाक्य और लिच्छवि आदि मामन्नों की लड़कियाँ थी। मैत्रिका, अन्यतरा उत्तमा, चाला, उपचाला, शिशपत्राला, रोहिणी, सुन्दरी, शुभा, भद्रा कापिलायिनी, मुक्ता, नन्दा, मकुला, चन्दा, गुप्ता, दन्तिका और शोभा ब्राह्मण-वंश की थीं । गहपति और वैश्य (सेट) वर्ग की महिलाओं में पूर्णा, चित्रा, श्यामा, उर्विरी, शुक्ला, धम्मदिन्ना, उत्तमा, भद्रा कुंडलकेगा, पटाचारा, मुजाता, अनोपमा और पूर्णिका थी। अड्ढकामी, अभय माता, विमला और अम्बपाली जैसी गणिकाएँ थीं। इसी प्रकार शुभा बढ़ई की पुत्री और चापा एक बहेलिये की लड़की थी। सारांग यह कि अनेक कुल-गीलों से स्त्रियों ने बुद्ध-गासन में दीक्षा ग्रहण की थी। 'थेरीगाथा' में सन्निहित इनके उद्गारों और उनमें प्रतिध्वनित इनकी पूर्व जीवन-चर्याओं से पाँचवी-छठी शताब्दी ईस्वी पूर्व के भारतीय समाज में नारी के स्थान पर भी पर्याप्त प्रकाश पड़ता है। परन्तु 'थेरीगाथा' का मुख्य आकर्षण तो उसकी काव्य और साधना की भूमि ही है, जिसके विषय में पीछे काफी कहा जा चुका है।
हम देखते है कि प्रकृति-वर्णन की ओर जितनी प्रवृत्ति भिक्षुओं की है, उतनी भिक्षुणियों की नहीं । 'थेरीगाथा' में केवल शभा भिक्षुणी की गाथाओं में वसन्त का वर्णन है। वह अत्यन्त सुन्दर, संश्लिष्ट और सूक्ष्म निरीक्षण पर आधारित है । पर उसका लक्ष्य वहाँ केवल पृष्ठमि को तैयार कर देना है। गुभा भिक्षुणी अपनी आँख को अश्रुजल-मिचित जल-बुद्रुद् मात्र कहती है। बाद में निर्विकार भाव मे उसे निकाल कर कामी पुरुष को दे देती है । इसके प्रभाव में तीव्रता लाने के लिए ही यहाँ पृष्ठभूमि रूप में वसन्त का वर्णन किया गया है। वमन्त की शोभा काव्य का सत्य है, आँख का वर्णन विज्ञान का सत्य है। इन दो मत्यों को इतने सुन्दर ढंग से आमने-सामने रख कर काव्य में कभी वर्णन नहीं किया गया। भिक्षणियों की प्रवृत्ति अपने आन्तरिक अनुभव के वर्णन