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(२४१ ) (९) वामेट्ठ (१०) कोकालिय (११) नालक और (१२) द्वायतानुपस्सना । चौथे वर्ग में १६ सत्त हैं. यथा (१) काम (२) गुहट्टक (३) दुट्ठक (४) मुट्ठक (५) परमट्टक (६) जरा (७) तिस्समेनेय्य, (८) पमूर () मागन्दिय, (१०) पुरामेद (११) कलहविवाद (१२) चुल वियह (१३) महावियह (१४) तुबटक (१५) अनदण्ड और (१६) मारिपुत्त । पाँचवें वर्ग में ये १७ सुत्न है, (१) वत्थुगाथा (२) अजितमाणवपुच्छा (३) तिस्समेनेयमाणवपुच्छा (४) पुषणकमाणवपुच्छा (५) मेनगुमाणवपुच्छा (६) धोतकमाणवपुच्छा (७) उपयीवमाणवपुच्छा (८) नन्दमाणवपुच्छा (९) हेमकमाणवपुच्छा (१०) तोदेय्यमाणवपुच्छा (११) कप्पमाणवपुच्छा (१२) जतुकण्णिमाणवपुच्छा (१३) भद्रावुधमाणवपुच्छा (१५) उदयमाणवपुच्छा (१५) पोमालमाणवपुच्छा (१६) मोघराजमाणवपुच्छा और (१७) पिगियमाणवपुच्छा ।
यद्यपि सुत्त-निपात की गाथाओं के अनेक अंग, जिनमें आख्यान भी कहीं कहीं कलात्मक सुन्दरता के साथ अनुविद्ध हैं, उद्धरण की अपेक्षा रखते हैं, किन्तु विस्तार-भय से ऐसा नहीं किया जा सकता। वास्तव में सुत्त-निपात में सभी कुछ इतना महत्त्वपूर्ण, सभी कुछ इतना आकर्षक ह कि कुछ समझ में नहीं आता कि उसकी सन्दरता का क्या नमना मामने रक्खा जाय । वह सब का सब बौद्धमाहित्य में जो कुछ भी अत्यन्त मुन्दर और अन्यन्त महत्त्वपूर्ण है, उसका नमना है। फिर भी पाँचवें वर्ग (पागयण वग्ग) मे बुद्ध के समकालिक गोदावरीतटवामी प्रसिद्ध वेदन ब्राह्मण बावरि के १६ शिष्यों के भगवान बुद्ध के साथ जो उदान्त-गम्भीर मंलाप हुए उनका कुछ दिग्दर्शन तो आवश्यक ही है। यहाँ हम देखेंगे कि वैदिक परम्परा के सच्चे माधकों ने भी वृद्ध को कितनी जल्दी पहचान लिया था और उन्हें कितना ऊंचा स्थान दिया था।
अजित-माणव-पुच्छा (अजित) "लोक किममे ढंका है ? किससे प्रकाशित नही होता ? किगे
इमका अभिलेपन कहते हो? क्या इसका महाभय है ?' (भगवान्) "अविद्या में लोक ढंका है, प्रमाद से प्रकाशित नहीं होता।