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( २२२ ) चूंकि प्राकृत धम्म पद की अभी कोई पूर्ण प्रति नहीं मिल सकी है, अतः दोनों के तुलनात्मक अध्ययन से किसी निश्चित मत पर नहीं पहुँचा जा सकता। जिन वर्गों के नामों में समानता है उनके भी क्रमों और गाथाओं की संख्या के सम्बन्ध में काफी असमानता है। अधिकतर पालि धम्मपद की अपेक्षा प्राकृतधम्मपद के वर्गों में ही गाथाएँ अधिक हैं। इस गाथा-वृद्धि का कारण यही जान पड़ता है कि चूंकि धम्मपद की गाथाओं का संग्रह पूरे सुत्त-पिटक के ग्रन्थों से ही किया गया है, अतः उनके चुनने में विभिन्न सम्प्रदायों के ग्रन्थों में विभिन्नता आ गई है। अन्य संस्करणों के वारे में भी यही वात है। धम्मपद का दूसरा संस्करण, जिसका भी स्वरूप अभी अनिश्चित ही है उसका गाथा-संस्कृत या मिश्रित संस्कृत में लिखा हुआ रूप है । इसका साक्ष्य हमें 'महावस्तु' से मिलता है जो स्वयं गाथा-संस्कृत में लिखी हुई रचना है और जिसने 'धर्मपद' का एक अंश मानते हुए 'सहस्र वर्ग' (धर्मपदेषु सहस्रवर्गः) नामक २४ गाथाओं के समूह को उद्धृत किया है। २ 'सहस्सग्ग' नामक धम्मपद का भी आठवाँ 'वग्ग' है, यह हम पहले देख चुके हैं। किन्तु वहाँ केवल १६ गाथाएँ हैं। 'महावस्तु' में उद्धृत 'सहस्र वर्ग' के अतिरिक्त प्राकृत धम्मपद के पूरे स्वरूप के बारे में हमें कुछ अधिक ज्ञान नहीं है। धम्मपद के 'चुह-खि-उ-थिङ' नामक चीनी अनुवाद से जो २२३ ई० में किया गया था, यह अवश्य ज्ञात होता है कि उसका मूल प्राकृत धम्मपद था, किन्तु उसके भी आज अनुपलब्ध होने के कारण प्राकृत-धम्मपद के वास्तविक स्वरूप की समस्या उलझी ही रह जाती है। धम्मपद का तीसरा रूप विशुद्ध संस्कृत में है जो अपने खंडित रूप में तुर्फान में पाया गया है। इस ग्रन्थ में २३ अध्याय हैं, अर्थात पालि धम्म पद से ६ अधिक। इसी संस्करण का तिब्बती भाषा में अनुवाद भी मिलता है जो ८१७-८४२ ईसवी में किया गया था। रॉकहिल ने इसका अनुवाद 'उदान वर्ग' शीर्षक से किया है और उसे संस्कृत-धर्मपद का प्रतिरूप
१. गाथा-वृद्धि के उदाहरणों और उनके कारणों के अधिक विस्तृत विवेचन के
के लिये देखिये वाडुआ और मित्र : प्राकृत धम्मपद, पृष्ठ ३१ (भूमिका) २. तेषां भगवान् जटिलानां धर्मपदेषु सहस्रवर्ग भासति 'सहस्रमपि वाचाना
अनर्थपदसंहितानां, एकार्थवती श्रेया यं श्रुत्वा उपसाम्यति' ।