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________________ ( २१६ ) मुझे लूट लिया, ऐसा जो मन में बाँधते हैं, उनका वैर कभी शान्त नहीं होता । "" अहिंसा का यह सनातन सन्देश भी कितना मार्मिक है "यहाँ वैर से वैर कभी शान्त नहीं होता । अवैर से ही वैर शान्त होता है, यही सनातन धर्म है । २" बड़ी बड़ी संहिताओं का भाषण करने वाले किन्तु उनके अनुसार आचरण न करने वाले व्यक्ति को 'धम्मपद' में उस ग्वाले के समान कहा गया है जिसका काम केवल दूसरों की गायों को गिनना है ।" बौद्ध चिन्तकों ने शारीरिक संयम की मूल को सदा मन के अन्दर देखा था, इसीलिए धम्मपद की प्रथम गाथा मन की महिमा का वर्णन करती हुई कहती है "मन ही सब धर्मों (कायिक, वाचिक मानसिक कर्मों) का अग्रगामी है मन ही उनका प्रधान है। सभी कर्म मनोमय है ।" आत्म-संयम वास्तविक श्रामण्य और सत्संकल्प के स्वरूप और महत्व के वर्णन इस वर्ग के अन्य विषय हैं । 'अप्पमादवग्ग' में प्रमाद की निन्दा और अ-प्रमाद की प्रशंसा की गई । अप्रमाद के द्वारा ही अनुपम योग-क्षेम रूपी निर्वाण को प्राप्त किया जाता 10 अप्रमाद के कारण ही इन्द्र देवताओं में श्रेष्ठ बना है । अप्रमाद में रत भिक्षुओं को ही यहाँ 'निर्वाण के समीप' ( निब्बाणस्सेव सन्तिके) कहा गया है । 'चित्तवग्ग' ( वर्ग ३) में चित्त-संयम का वर्णन है । “जितनी भलाई न माता-पिता कर सकते हैं, न दूसरे भाई-बन्धु, उससे अधिक भलाई ठीक मार्ग पर लगा हुआ चित्त करता है ।" 'पुप्फवग्ग ( वर्ग ४ ) में पुष्प को आलम्बन मानकर नैतिक उपदेश दिया गया है । सदाचार रूपी गन्ध की प्रशंसा करते हुए कहा गया है " तगर और चन्दन की जो यह गन्ध फैलती है, वह अल्पमात्र है । किन्तु यह जो सदाचारियों की गन्ध है वह देवताओं में फैलती है ।" 'बालवग्ग' १. ११४ २. ११५ ३. १।१९ ४. २१३ ५. २११० ६. २।१२
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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