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________________ ( २१२ ) १७ आलवक सुत्त १८ कसिभारद्वाज मुन १९ पराभव. मुन २० वमल मुत्त २१ सच्चविभंग सुन २२ आटानाटिय मुक्त इनके अतिरिक्त परित-पाट से 'अनुलोम-पटिलोम-पटिच्चसमुप्पादसुत्त' आदि कुछ स्त्रों का भी पाठ किया जाता है। परित्त पाठ की प्रथा बुद्ध-काल में भी प्रचलित थी, ऐमा बौद्धों का विश्वास है । कहा जाता है कि एक बार लिच्छवियों के नगर वैशाली में दुर्भिक्ष पड़ा था । भगवान् के आदेशानुसार उन्होंने परित्त पाठ किया था, जिसके परिणामस्वरूप वर्षा हुई थी । परित्तपाठ से बीमारी की शान्ति हुई, इसके तो उदाहरण त्रिपिटक में काफी मिलते है । दीर्घ लम्बक ग्राम के किसी ब्राह्मण का पुत्र परित्त-पाठ से रोग-विमुक्त हो गया । इसी प्रकार आर्य महाकाश्यप की बीमारी के समय स्वयं भगवान् ने बोझंग-सुत्त का पाठ किया और महाकाश्यप उसी समय रोग-मुक्त हो गये। स्वयं भगवान् बुद्ध ने एक बार अपनी बीमारी की गान्ति के लिये महाचुन्द स्थविर से बोज्झंग-सत्त का पाठ करवाया। गिरिमानन्द नामक भिक्षुकी रोग-शान्ति के लिये विधान बतलाते हुए भगवान् ने स्वयं आनन्द से कहा “आनन्द! यदि तुम गिरिमानन्द भिक्षुके पास जाकर 'दश-मंज्ञा-सूत्र' का पाठ करो, तो उसे सुनकर अवश्य ही उसका रोग शान्त हो जायगा।" 'मिलिन्द-प्रश्न' में 'परित्र' को भगवान् बद्ध का ही उपदेश वतलाया गया है। अतः परित्त पाठ का महत्व स्थविरवादी परम्परा में प्रतिष्ठित है, इसमें सन्देह नही ।। परित के संकलन का ठीक काल निश्चय नहीं किया जा सकता, किन्तु इसमें १.सचे खो त्वं आनन्द ! गिरिमानन्दस्स भिक्खुनो उपसंकमित्वा दस सञ्जा भासेय्यासि, ठानं सो पनेतं विज्जति यं गिरिमानन्दस्स भिक्खनो दससा सत्वा सो आवाधो ठानसो पटिप्पस्सभ्येय्य । २. परिता च भगवता उदिहाति । मिलिन्दपञ्ह, पृष्ठ १५३ (बम्बई विश्वविद्यालय का संस्करण)
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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