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________________ ( १८३ ) उसके ऐतिहासिक महत्त्व के कारण, यहाँ पूर्णतः उद्धृत करना ही उपयुक्त होगा, "ऐसा मैने सुना--एक समय भगवान् थावस्ती में अनाथपिडिक के आराम जेतवन में विहार करते थे। . . . . . . भगवान् ने भिक्षुओं को सम्बोधित किया, (१) भिक्षओ ! मेरे रक्तज (अनुरक्त) भिक्षु धावकों में यह आजाकौण्डिन्य अग्र (श्रेष्ठ) है। (२) महाप्रजों में यह मारिपुत्र अग्र है (३) ऋद्धिमानों में यह महामौद्गल्यायन अग्र है (४) धतवादियों (अवधत-व्रतों का का अभ्यास करने वालों) में यह महाकाश्यप अग्र है (५) दिव्यचक्षुकों में यह अनिरुद्ध अग्र है। (६) उच्च-कुलीनों में यह भद्दिय कालिगोधा-पुत्र अग्र है। (७) मंज स्वर मे धर्म उपदेश करने वालों में यह लंकुटिक-भट्टिय अग्र है। (८) मिहनाद करने वालों में यह पिंडोल भारद्वाज अग्र है (९) धर्मउपदेश करने वालों में यह पूर्ण मैत्रायणी पुत्र अग्र है (१०) मंक्षिप्त धर्मोपदेश को विस्तृत रूप से समझाने वालों में यह महाकात्यायन अग्र है। (११) मनोमय काय निर्माण करने वालों में यह चुल्ल पंथक अग्र है। (१२) संज्ञा-विवर्तचतुरों में यह महापंथक अग्र है । (१३) अरण्य विहारियों में यह मुभूति अग्र है; दान-पात्रों में भी यह मभूति अग्र है । (१४) आरण्यकों में यह रेवत खदिर वनिय अग्र है । (१५) ध्यानियों में यह कंखा-रेवत अग्र है। (१६) आरब्ध-वीर्यों में यह सोण कोडिवीम (गोणकोटिविंश) अग्र है । (१७) सुवक्ताओं में यह मोण कुटिकण्ण अग्र है। (१८) लाभ पाने वालों में यह मीवली अग्र है । (१९) श्रद्धावानों में यह वक्कली अग्र है। (२०) शिक्षा-कामों (भिक्ष-नियम के पाबन्दों में) यह राहुल अग्र है। (२१) श्रद्धा से प्रवृजितों में यह राष्ट्रपाल अग्र है। (२२) प्रथम गलाका ग्रहण करने . वालों में यह कुंडधान अग्र है। (२३) प्रतिभा वालों में यह वंगीश अग्र है। (२४) समन्त प्रामादिकों (सब ओर मे मुन्दरों) में यह उपमेन वंगन्तपुत्त अग्र है। (२५) शयनासन-प्रजापकों (गृह-प्रबन्धकों) में यह दब्ब मल्लपुत्त अग्र है। (२६) देवताओं के प्रियों में यह पिलिन्द वात्स्य-पुत्र अग्र है । (२७) क्षिप्राभिज्ञों (प्रवर वृद्धियों) में यह बाहिय दारुचीग्यि अग्र है। (२८) चित्र कथिकों (विचित्र वक्ताओं) में यह कुमार काश्यप अग्र है। (२९) प्रतिसंवित्-प्राप्तों में यह महाकोठित (महाकोष्ठित) अग्र है। (३०) बहुश्रतों में, गतिमानों में, स्थितिमानों में. यह आनन्द अग्र है। (३१) महापरिषद् वालों में यह उम्वेल-काश्यप अग्र है। (३०) कूल-प्रमादकों (कुलों को प्रसन्न
SR No.010624
Book TitlePali Sahitya ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatsinh Upadhyaya
PublisherHindi Sahitya Sammelan Prayag
Publication Year2008
Total Pages760
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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