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८८. बाहितिक - सुत -- शुभ और अशुभ आचरण । बुद्ध अशुभ आचरण नहीं कर सकते । आनन्द का प्रसेनजित् को उपदेश ।
८९. धम्मचेतिय-सुत्त -- भोगों के दुष्परिणाम एवं बुद्ध की प्रज्ञा का दर्शन । ९०. कण्णकत्थल-सुत्त --- क्या बुद्ध सर्वज्ञ हैं ?
(१०) ब्राह्मण - वग्ग
९१. ब्रह्मायु- सुत्त -- ३२ महापुरुष - लक्षण । तथागत के ईर्यापथ का विवरण | ब्राह्मण, वेदगू आदि शब्दों की बुद्धमतानुसार व्याख्या ।
९२. मेल - सुत्त - - सेल ब्राह्मण की प्रव्रज्या ।
९३. अस्सलायन - सुत्त -- जातिवाद का खंडन | श्रावस्ती - निवासी आश्वलायन ब्राह्मण का यहाँ वर्णन है, जिसे विद्वानों ने प्रश्न- उपनिषद् के आश्वलायन से मिलाया है ।
९४. घोटमुख- सुत्त -- आत्म- पीड़ा की निन्दा |
९५. चंकि सुत्त - बुद्ध के गुणों का वर्णन । सत्य की रक्षा और प्राप्ति के उपाय ९६. फासुकारि-सुत्त --- जातिवाद की निन्दा |
९७. धानंजानि-सुत्त - - गृहस्थ-बन्धन अशुभ कर्म करने का वहाना नहीं ।
९८. वासेट्ठ-सुत्त -- वास्तविक ब्राह्मण कौन ?
९९. सुभ-सुत्त --गृहस्थ और संन्यास की तुलना ।
१००. संगारव - सुत्त -- बुद्ध - जीवनी का विवरण | बुद्ध द्वारा देवताओं के अस्तित्व की स्वीकृति ।
(११) देवदह वग्ग
१०१. देवदह - पुत्त -- निगंठों के मत का विवरण ।
१०२. पञ्चत्तय सुत्त -- आत्मवाद आदि नाना मतवादों का खंडन ।
१०३. किन्ति - सुत्त - भिक्षुओं को एकता का उपदेश ।
१०४. सामगाम - सुत्त -- बुद्ध के मूल उपदेश । संघ में शान्ति
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सम्बन्धी उपदेश | इस सुत्त में जैन तीर्थंकर भगवान् महावीर की कैवल्य प्राप्ति की सूचना है ।
१०५. सुनक्खत सुत्त- ध्यान और चित्त-संयम पर प्रवचन । १०६. आनंजसप्पाय- सुत्त -- भोगों की निस्सारता ।
१०७. गणकमोग्गल्लान-मुत्त--- आचरण की शिक्षा का क्रमिक विकास |