________________
छोड़कर हो अनुपम विद्या और आचरण की सम्पदा का साक्षात्कार किया जाता है।" इस प्रकार इस सत्त को जातिवाद के विरुद्ध भगवान् का सिंहनाद ही समझना चाहिये। इस मुत्त का एक ऐतिहासिक महत्व यह है कि यहाँ कृष्ण को एक प्राचीन ऋषि के रूप में स्मरण किया गया है “वह कृष्ण महान ऋषि थे। उन्होंने दक्षिण देश में जाकर ब्रह्ममन्त्र पढ़ कर, राजा इक्ष्वाकु के पास जा उसकी क्षुद्ररूपी कन्या को माँगा। तब राजा इक्ष्वाकु ने 'अरे यह मेरी दासी का पुत्र होकर मेरी कन्या को माँगता है, कुपित हो असन्तुष्ट हो, बाण चढ़ाया।". . . . . . इक्ष्वाकु ने ऋषि को कन्या प्रदान की। . . . . . . वह कृष्ण महान ऋषि थे।" शाक्यों की उत्पत्ति के विषय में भी यहाँ वर्णन किया गया है। सोणदण्ड-सुत्त. (दीघ १४)
सोणदण्ड (स्वर्णदण्ड) नामक ब्राह्मण के साथ भगवान् का संवाद। विषय वही पूर्ववत् जातिवाद का खंडन । ब्राह्मण बनाने वाले धर्मो अर्थात् सदाचार और ज्ञान का आचरण करने वाला व्यक्ति ही सच्चा ब्राह्मण है, न कि केवल ब्राह्मणकूल में उत्पन्न । इस सुत्त में अङ्ग की राजधानी चम्पा (वर्तमान चम्पा नगर और चम्पापुर, भागलपुर के समीप) का उल्लेख है। राजा बिम्बसार द्वारा प्रदत्त चम्पा नगर की आय का उपभोग सोणदण्ड ब्राह्मण करता था ।
कूटदन्त-सुत्त (दीघ. ११५) __ कूटदन्त नामक ब्राह्मण के साथ भगवान् का संवाद । बड़ी सामग्रियो वाले एवं हिंसामय यज्ञ के स्थान पर यहाँ ज्ञान-यज्ञ का आदर्श रक्खा गया है। कटदन्त ब्राह्मण एक महायज्ञ करना चाहता था। उसने भगवान से जाकर पूछा, “भन्ते ! मै महायज्ञ करना चाहता हूँ। मैंने सुना है आप सोलह परिष्कार सहित त्रिविध यज्ञ-सम्पदा को जानते हैं। कृपाकर आप मुझे उसे बतावें ।" भगवान् ने पूर्वकाल में महाविजित के आख्यान को कह कर उसे यह तत्त्व बताया है । वास्तव में महाविजित का यह आख्यान एक प्रकार का जातक-कथानक ही है। महाविजित नामक राजा ने भी प्राचीन युग में एक यज्ञ किया था। "ब्राह्मण ! उस यज्ञ में गाएँ नहीं मारी गई, बकरे-भेड़ें नहीं मारी गईं, मुर्गे-सूअर नहीं मारे गये। न यज-स्तम्भ के लिये वृक्ष काटे गये, न पर-हिंसा के लिये कुश काटे गये। जो भी उसके दास और नौकर थे, उन्होंने भी दण्ड के भय से रहित होकर, जिन्होंने चाहा किया, जिन्होंने