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( ११० ) चली आ रही है। भारत में हम अभी हाल में परिनिवृत्त पूज्य आचार्य धर्मानन्द कौशाम्बी के नाम से सुपरिचित हैं। उन्होंने अनुपिटक साहित्य को दो महत्वपूर्ण ग्रन्थ दिये हैं, एक 'विसुद्धिमग्गदीपिका' नामक 'विसुद्धि-मग्ग' की टीका और दूसरा 'अभिधम्मत्थसंगह' पर 'नवनीत टीका'। इस वर्तमान काल में रचित साहित्य मे भी यद्यपि बहुत सी बातों को आधुनिक ढंग से रखने का प्रयत्न किया गया है जो बहुत आवश्यक है, फिर भी आलोक और प्रामाणिक आधार तो बुद्धघोष की रचनाओं से ही लिया गया है। अतः बारहवीं शताब्दी से लेकर इस इतने अभिनव साहित्य को भी 'बुद्धघोष-युग की परम्परा अथवा टीकाओं का युग' कहना अनुचित नहीं है।