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( ८८ ) वत्थु' की रचना महास्थविर तिस्स मोग्गलिपुत्त ने अशोक के समय मे का . इतना भी निश्चित है कि सम्पूर्ण अभिधम्म-पिटक के स्वरूप का निश्चय अन्तिम रूप से इस संगीति के समय तक हो गया था। इस सभा के परिणाम-स्वरूप एक महत्वपूर्ण निश्चय विदेशों में बुद्ध-धर्म के प्रचार करने के लिये उपदेशकों को भेजने का भी किया गया। अशोक के तेरहवें और दूसरे शिलालेखों से यह स्पष्ट होता है कि उसने न केवल अपने विशाल साम्राज्य के विभिन्न प्रान्तों में ही बल्कि सीमान्त देशों में बसने वाली यवन, काम्बोज, गान्धार, राष्ट्रिक, पितनिक, भोज, आन्ध्र, पुलिन्द आदि जातियों में और केरलपुत्र, सत्यपुत्र, चोल, पाण्ड्य नामक दक्षिणी भारत के स्वाधीन राज्यों में तथा सिंहल द्वीप में भी बुद्ध-धर्म के प्रचारार्थ धर्मोपदेशकों को भेजा था। दीप-वंस,' महावंस और सभन्तपासादिका में उन भिक्षुओं की नामावली सुरक्षित है, जिन्हें भिन्न भिन्न देशों में बुद्ध-धर्म का प्रचार करने के लिये भेजा गया था। किस-किस भिक्षु को किस-किस प्रदेश में भेजा गया, इसकी यह सूची इस प्रकार है-- १. स्थविर माध्यन्तिक (मज्झन्तिक) --काश्मीर और गान्धार प्रदेश को २. स्थविर महादेव
----महिष मंडल (महिसक मंडल) को
(नर्वदा के दक्षिण का प्रदेश) ३. स्थविर रक्षित (रक्खित) --वनवासि-प्रदेश को
(वर्तमान उत्तरी कनारा) ४. यूनानी भिक्षु धर्मरक्षित (योनक धम्मरक्खित)
--अपरान्तक प्रदेश को
(वर्तमान गुजरात) ५. स्थविर महाधर्मरक्षित --महाराष्ट्र (महारट्ठ) को
(महाधम्मरक्वित ३. स्थविर महारक्षित (महारक्खित) ---यवन-देश (योनक लोक) को
(बैक्ट्रिया) ७. स्थविर मध्यम (मज्झिम) --हिमालय-प्रदेश (हिमवन्त) को
१. परिच्छेद ८ २. ५।२८०, १२।१-८ ३. पृष्ठ ६३-६४ (पालि टैक्स्ट सोसायटी का संस्करण)