________________
[३६] अत्यत्र और भी योगसम्बन्धी दो उल्लेख हैं, जिनमें एक तो पातञ्जल योगशास्त्रका संपूर्ण सूत्र ही है, और दूसरा उसका अविकल सूत्र नहीं, किन्तु उसके सूत्रसे मिलता जुलता है। तथापि “अथ सम्यग्दर्शनाभ्युपायो योगः " इस उल्लेखकी शब्दरचना और स्वतन्त्रताकी ओर ध्यान देनेसे यही कहना पडता है कि पिछले दो उल्लेख भी उसी भिन्न योगशास्त्रके होने चाहिये, जिसका कि अंश "अथ सम्यग्दर्शनाभ्युपायो योगः" यह वाक्य माना जाय । अस्तु, जो हमारे सामने तो पतञ्जलिका ही योगशास्त्र उपस्थित है, और वह सर्वप्रिय है । इसलिये बहुत संक्षेपमें भी उसका बाह्य तथा प्रान्तरिक परिचय कराना अनुपयुक्त न होगा।
इस योगशास्त्र के चार पाद और कुल सूत्र १६५ हैं। पहले पादका नाम समाधि. दूसरेका साधन, तीसरेका विभूति,
१॥ स्वाध्यावादिष्टदेवतासंप्रयोगः " ब्रह्ममूत्र १-३-३३ भाष्यगत । योगशाखप्रसिद्वा. मनसः पञ्च वृत्तयः परिगृह्यते, "प्रमाणविपर्ययविकल्पनिद्रास्मृतयः नाम' २-४-१२ भाष्यगत। ___प वासुदेव शास्त्री अभ्यंकरने अपने ब्रह्ममूत्र रु मराठी अनुवाद के परिशिष्टमे उक्त दो उल्लेलोका योगसूत्ररूपमे निर्देश किया है. पर "थ सम्यग्दर्शनाभ्युणयो योगः" इस उल्लेबके संबंधमे कहीं भी रहापोह नहीं किया है.
२ मिलायो पा. २ मू. ४४ । मिना को पा, " सू.६।