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[३५] आधारपर किसी श्वेताम्बर आचार्यके द्वारा वह रचा गया है। दिगम्बर साहित्यमें ज्ञानार्णव तो प्रसिद्ध ही है, पर ध्यानसार और योगप्रदीप ये दो हस्तलिखित ग्रन्थ भी हमारे देखनेमें आये हैं, जो पचवन्ध और प्रमाणमें छोटे हैं। इसके सिवाय वेताम्बर दिगम्बर संप्रदायके योगविषयक ग्रन्थोका कुछ विशेष परिचय जैन ग्रन्थावलि पृ० १०६ से भी मिल सकता है। वस यहांतकहीमें जैन योगसाहित्य समाप्त हो जाता है। __बौद्ध सम्प्रदाय भी जैन सम्प्रदायकी तरह निवृत्तिप्रधान है। भगवान् गौतम बुद्धने बुद्धत्व प्राप्त होनेसे पहले छह वर्षतक मुख्यतया ध्यानद्वारा योगाभ्यास ही किया। उनके हजारों शिष्य भी उसी मार्ग पर चले । मौलिक वौद्धग्रन्थोंमें जैन आगमोंके समान योग अर्थमें बहुधा ध्यान शब्द ही मिलता है, और उनमें ध्यानके चार भेद नजर आते हैं। उक्त चार भेदके नाम तथा भाव प्रायः वही हैं, जो जैनदर्शन तथा योगदर्शनकी प्रक्रियामें हैं। बौद्ध सम्प्रदायमें समाधि
१. सो खो अहं ब्राह्मण विविचेव कामेहि विविञ्च अकुसलेहि धम्मेहि सावितकं सविचारं विवेकजं पीतिसुखं पढमझानं उपसंपन्ज विहासि, वितक विचारानं वूपममा अज्झत्तं संपसादनं चेतसो एकोदिभावं अवितकं अविचारं समाधिजं पीतिसुखं दुतियज्मानं उपसंपज विहासि; पीतिया च विरागा उपेक्खको च