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[१६] अनेक स्थानोंमें आया है, पर सर्वत्र उसका अर्थ प्रायः जोडना इतना ही है. ध्यान या समाधि अर्थ नहीं है । इतना ही नहीं बल्कि पिछले योग विषयक साहित्यमें ध्यान, वैराग्य. प्राणायाम, प्रत्याहार आदि जो योगप्रक्रिया प्रसिद्ध शब्द पाये जाते हैं वे ऋग्वेदमें बिलकुल नहीं हैं। ऐसा होनेका कारण जो कुछ हो. पर यह निश्चित है कि तत्कालीन लोगोंमें ध्यानकी भी रुचि थी । ऋग्वेदका ब्रह्मस्फुरण जैसे जैसे विकसित होता गया और उपनिषदके जमानेमें उसने जैसे ही विस्तृत रूप धारण किया वैसे वैसे ध्यानमार्ग भी अधिक पुष्ट और साङ्गोपाङ्ग होता चला । यही कारण है कि प्राचीन उपनिषदोंमें भी समाधि अर्थमें योग, ध्यान ___ भाषांतर:-कौन जानता है-कौन कह सकता है कि यह विविध सृष्टि कहॉसे उत्पन्न हुइ ?। देव इसके विविध सर्जनके बाद ( हुवे ) है। कौन जान सकता है कि यह कहांसे आई ? यह विविध सृष्टि कहांसे आई और स्थितिमें है वा नहीं है ? यह यात परम व्योममें जो इसका अध्यक्ष है वही जाने-कदाचित् वह भी न जानता हो।
१ मंडल १ सूक्त ३४ मंत्र:। मं. १० सू. १६६ मं. ५। मं. १सू. १८ मं. ७ । मं १. सू. ५ मं. ३। मं. २ सू. ८ मं.१। सं. ९ सू. ५८ मं.३।