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________________ [६] ३ लोकरुचि-आध्यात्मिक विषयकी चर्चावाला और खासकर योगविषयक कोइ भी ग्रन्थ किसीने भी लिखा कि लोगोंने उसे अपनाया । कंगाल और दीन हीन अवस्थामें भी भारतवर्षीय लोगोंकी उक्त अभिरुचि यह सूचित करती है कि योगका सम्बन्ध उनके देश व उनकी जातिमें पहलेसे ही चला आता है। इसी कारणसे भारतवर्षकी सभ्यता अरण्यमें उत्पन्न हुइ कही जाती है। इस पैतृक स्वभावके कारण जब कभी भारतीय लोग तीर्थयात्रा या सफरके लिये पहाडों, जंगलों और अन्य तीर्थस्थानों में जाते हैं तब वे डेरातंच डालनेसे पहले ही योगियोंको, उनके मठोंको और उनके चिह्नतकको भी ढुंढा करते हैं। योगकी श्रद्धाका उद्रेक यहां तक देखा जाता है कि किसी नंगे पावेको गांजेकी चिलम फूंकते या जटा बढ़ाते देखा कि उसके मुंहके धुंएमें या उसकी जटा व भस्मलेपमें योगका गन्ध आने लगता है । भारतवर्ष के पहाड, जंगल और तीर्थस्थान भी बिलकुल योगिशून्य मिलना दुःसंभव है। ऐसी स्थिति अन्य देश और अन्य जातिमें दुर्लभ है। इससे यह अनुमान करना सहज है कि योगको आविष्कृत करनेका तथा परा १ देखो कविवर टागोर कृत " साधना" पृष्ठ ४. “ Thus in India it was in the forests that our civilisation had its buth......etc"
SR No.010623
Book TitlePatanjal Yogdarshan tatha Haribhadri Yogvinshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1922
Total Pages249
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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