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(१६) पुस्तक में यद्यपि उपलब्ध प्रतियों के आधार पर शुद्ध पाठ ग्रहण किये गये हैं तथापि इस की मन्त्रशास्त्रीयता पर ध्यान रखते हुए अधिक साहस से काम नहीं लिया गया है। इस पुस्तक का सम्पादन कार्य मुझे मुनि श्रीजिनविजयजी महाराज ने सौंपा है और समय समय पर आवश्यक निदर्शन भी किये हैं। पुस्तक का यह स्वरूप उन्हीं की कृपा से बन सका है अत एव उन के प्रति हार्दिक कृतनभाव शापित करता हूँ। पण्डित भी गंगाधरजी द्विवेदी और श्री लाधूरामजी दूधोडिया ने अपनी हस्तलिखित प्रतियां देकर मुझे उपकृत किया है, एतदर्थ उन का भाभार मानता हूं । सन्दर्भसंकलन, प्रेसकापीलेखन एवं प्राग्रूप संशोधन में मेरे सुहद् श्रीमल्लक्ष्मीनारायणजी गोस्वामी और श्रीमदन शर्मा "सुधाकर" ने यथेष्ट सहयोग दिया है तदर्थ इन दोनों बन्धुत्रों को अकृत्रिम धन्यवाद अर्पित करता है।
आशा है, यह पुस्तक भवालुओं एवं साहित्यान्वेषणरसिकों के कुछ काम आएगी।
ऋषिपञ्चमी, २०१७ वि. राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान,
जोधपुर।
प्रगतिपरायण
गोपालनारायण