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बलात्कार गण-प्राचीन इस गण का नामकरण सबसे प्राचीन लेखोंमें ( ले. ८७,८८ | बलात्कार गण यही पाया जाता है। किन्तु इस का मूल रूप बळगार गण यही मालूम पडता है [ले. ८९ । इसके दूसरे रूप बळात्कार और बळकार भी हैं [ ले. ९१ ] इस गण के प्राचीन उल्लेख ज्यादातर कर्णाटक के मिले हैं किन्तु इन्ही में एकसे इस का सम्बन्ध चित्रकूट और मालवसे जोडा गया है [ले. ९०] । चौदहवीं सदी से इस के साथ सरस्वती गच्छ और उस के पर्यायवाची भारती, वागेश्वरी, शारदा आदि नाम जुडे हैं ले. ९६,१६७,१८१, आदि । इस नाम का सम्बन्ध उस वादसे जोडा जाता है जिसमे दिगम्बर संघ के आचार्य पद्मनन्दिने श्वेताम्बरोंसे विवाद कर पाषाणकी सरस्वती मूर्तिसे मन्त्रशक्ति द्वारा निर्णय कराया था । यह वाद गिरनार पर्वत पर हुआ कहा जाता है । ये पद्मनन्दि सम्भवतः आचार्य कुंदकुंद ही हैं । इन्हीं से इस गण का तीसरा विशेषण कुंदकुंदान्धय प्रचलित हुआ है ! ले. १०८ आदि । कहीं कहीं इसे नन्दिसंघ या नंद्याम्नाय भी कहा है (ले. २६७ आदि)।
बलात्कार गण का सब से प्राचीन उल्लेख आचार्य श्रीचन्द्र ने किया है । आप के दीक्षागुरु आ. श्रीनन्दि और विद्यागुरु आ. सागरसेन थे । आप का निवास धारा नगरी में था जहां उस समय महाराज भोज राज्य कर रहे थे । आपने संवत् १०७० मे पुराणसार, संवत १०८० मे उत्तरपुराण टिप्पण और संवत् १०८७ मे ,पद्मचरित टिप्पण की रचना की [ले. ८६-८८ ।।
इस गण के दूसरे आचार्य केशवनन्दि थे । चालुक्य वंशीय लोक्यमल्ल देव के राज्यकाल में शक ९७० की ज्येष्ठ शुक्ल १३ को जजाहुति के शान्तिनाथ मन्दिर के लिए मंडलेश्वर चावुण्डराय ने राजधानी बळ्ळिगावे से आप को कुछ दान दिया । आप अटोपवासी थे तथा मेधनन्दि भट्टारक के शिष्य थे (ले. ८९ ) ।
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