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१. सेनगण
लेखांक ५१ -
मूलसंघ कुलतिलक गछ पुष्करमे सोहे। चारिय गणमे मुख्य सेनगण महिमा मोहे ॥ भट्टारक जिनसेन गुरु मोरपीछ हस्ते धरे । पूरनमल यों कहे भव्यलोक तारण तरण ॥
( ना. ६३) लेखांक ५२ – पार्श्वनाथ मूर्ति
छत्रसेन संवत १७५४ मूलसंघे सेनगणे पुष्करगच्छे भ. छत्रसेनोपदेशात् प्रतिष्ठितं ।।
( केळीबाग मन्दिर, नागपुर) लेखांक ५३ - द्रोपदीहरण
उत्तम देश वराड मझारमे कारंज रंजक हे पुर नीको। सत्य सुपारसदेव महा मूलनायक मूलसुसंघ सजीको ।। सेनगणाश्रीत पुष्करगच्छ प्रधान सदा अति ग्राह गुणीको । श्रीछत्रसेन रचै कवि चौषद द्रौपदीहरण चरित्र सुलीकौ ॥ २६
(ना.६१) लेखांक ५४ - समवशरणषट्पदी
कारंजा शुभ नगरमे श्रीपार्श्वनाथ चैत्यालये। छत्रसेन गछाति कहे खैरासा वचने किये ।। ५१
(ना. ८.७) लेखांक ५५ - मेरुपूजा
इति त्रिभुवनसंस्थं श्रीजिनबिंब योर्चति पुष्पभृतांजलिकैः। सो ना जगतीष्टं लभति विशिष्टं छत्रसेनमुनिना कथितं ।।
(म. १०)
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