________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
लेखांक ५०
भट्टारक संप्रदाय
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१६.
लेखांक ४९ - १ मूर्ति
शके १६०७ क्रोधनामसंवत्सरे सुदि १० बुधे पुष्करगच्छे सेनगणे वृषभसेनान्वये भ. सोमसेनदेवाः तत्पट्टे भ. जिनसेनगुरूपदेशात् जालीग्रामे धाकडज्ञातीय कन्हा नित्यं प्रणमति ॥ ( कोंढाळी, अ. ४ पृ. ५०५ )
[ ४९ -
For Private And Personal Use Only
नगर अचलपुरमांहि जैन सासन गछनायक । को चमास आइ कहत सिद्धांत सुलायक | रुसी सरप पग डस्यो खस्यो विष सर्व सरीरह । ध्यान धरी मुनिराड़ पठ्यो पुनि विषापहारह || निर्विष तन छिनमे भयो सकल विघ्न दूरे कन्यो । भट्टारक जिनसेनको प्रताप भारी धन्यो || १ | श्रावकके घर जाइ भावरी भोजन कीन्हो । शाक परोस बचनाग नाग धोके बहु लीनो 11
जब सर्वांग सावधानी मन आनी । विषापहार सुचिति चित्त नहि चिंता मानी | वमन करी विष टालियो सहियो परिसह जोर । भट्टारक जिनसेनकी कीरति भइ बहु ठौर ॥ २ ॥ रायमलसा पुत्र वंस हुंबड बडमंडन । राना देस विख्यात नगर सावलि सुभ स्तंभन || पद्मनंदि गुरु राय पाय सेवे बालापन | चौदह विद्यानिधान बहोतरी कलाभूषण ॥ कारंजे नगरे सुभग सोमसेन पट उद्धयो । जिनसेन नाम परगट भयो भट्टारक जग उद्घप्यो || ३ || संघप्रतिष्ठा पाच धर्म उपदेस सु कारी ।
श्री गिरनार समेदशिखर तीरथ कियो भारी ॥ संघपति सोयरासाह निवासा माधवसंगवी | गनबा संगवी रामटेकमा कान्हा संगवी || जिनसेन नाम गुरुरायणे संघतिलक एते दिय । माणिक्यस्वामी यात्रा सफल धर्म काम बहु बहु किय ॥ ४ ॥
( ना. ६३ )