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भट्टारक संप्रदाय
में अगरवाल साध्वी देवश्री ने पंचास्तिकाय की प्रति लिखवाई थी [ ले. ५५५ ] | आप ने संवत् १४७३ में एक मूर्ति स्थापित की (ले. ५५६ ) ।
गुणकीर्ति के पट्टशिष्य यशःकीर्ति हुए । आप ने ग्वालियर में डूंगरसिंह के राज्यकाल में" संवत् १४८६ में भविष्यदत्तपंचमीकथा की एकप्रति लिखी [ ले. ५५७ ] | आप ने पांडवपुराण लिखा तथा त्रिभुवन स्वयंभू कृत अरिष्टनेमिचरित की एक अधूरी प्रति को स्वयं पूरा किया [ ले. ५५८-५९ ] ।
यशः कीर्ति के शिष्य पंडित रइधू ने संवत् १४९७ में ग्वालियर डूंगर सिंह के राज्यकाल में एक आदिनाथ मूर्ति स्थापित की [ले. ५६० ] | इन के सन्मतिजिनचरित से पता चलता है कि अगरवाल जाति के क्षुल्लक खेल्हा ने ग्वालियर में चंद्रप्रभ की उत्तुंग मूर्ति करवाई थी [ले. ५६१ ] । यशः कीर्ति से गुरुमन्त्र पा कर सिंहसेन ने आदिपुराण की रचना की [ले. ५६२ ] ।
यशः कीर्ति के पट्टशिष्य मलयकीर्ति हुए । आप ने संवत् १५०२ में एक यंत्र तथा संवत् १५१० में एक मूर्ति स्थापित की [ ले. ५६३५६४ ]।
मलकीर्ति के अनन्तर गुणभद्र भट्टारक हुए । इन के आम्नाय में अगरवाल जिनदास ने संवत् १५१० में ग्वालियर में डूंगर सिंह के राज्यकाल में समयसार की एक प्रति लिखवाई [ ले. ५६५ ] । संवत् १५१२ में गुणभद्र ने पंचास्तिकाय की एक प्रति ब्रह्म धर्मदास को दी [ ले.
१०१ - १०२ तोमरवंश का इतिहास अभी सुनिश्चित नहीं हुआ है । वीरमदेव, डूंगर सिंह, कीर्तिसिंह और मानसिंह इन चार राजाओं के उल्लेख इसी प्रकरण में
हुए
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१०३ पंडित रहधू की अन्य कृतियों के विवेचन के लिए पं. परमानन्द का एक लेख देखिए अनेकान्त वर्ष १० पृ. ३७७
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