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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१८ भट्टारक संप्रदाय [५५८ - संजायउ वीरजिणुक्कमेण परिवाडिय जइवर णिहयएण ॥ सिरिदेवसेणु तह विमलसेणु तह धम्मसेणु पुणु भावसेणु ॥ तहो पट्ट उवण्णउ सहसकित्ति अणवरय भमिय जइ जासु कित्ति ॥ तह विक्खायउ गुणकित्ति णामु तवतेए जासु सरीरु खामु ॥ तहो णियबंधउ जसकित्ति जाउ आयरिय पणासिय दोसु वाउ ॥ [अ. ७ पृ. १६३] लेखांक ५५९- रिद्वनेमिचरिउ गय तिहुयणसयंभु सुरठाणहो जं उव्वरिउ किंपि सुणियाणहो । तं जसकित्तिमुणिहि उद्धरियउ । णिएवि सुत्तु हरिवंसच्छरियउ॥ णियगुरुसिरिगुणकित्ति पसाए । किउ परिपुण्णु मणहो अणुराए॥ सरहसेणेदं सेठि आएसे । कुमरणयरि आविउ सविसेसे ॥ गोवगिरिहे समीचे विसालए । पणियारहे जिणवरचेयालए ॥ भहवमासि विणासियभवकलि । हुउ परिपुण्णु चउहिसि णिम्मलि ॥ [जैन साहित्य और इतिहास पृ. ३९३ ] लेखांक ५६० - आदिनाथ मूर्ति ___संवत १४९७ वर्षे वैसाख .. ७ शुक्रे पुनर्वसुनक्षत्रे श्रीगोपाचलदुर्गे महाराजाधिराज राजा श्रीडूंग(रसिंह) राज्य संवर्तमाने श्रीकाष्ठासंघे माथुरगच्छे पुष्करगणे भ. गुणकीर्तिदेवाः तत्पट्टे भ. यशःकीर्तिदेवाः प्रतिष्ठाचार्य पंडित रइधू तेषां आनाये अग्रोतवंशे गोयलगोत्रे साधु...॥ (अ. १० पृ. ३८०) लेखांक ५६१ - सम्मइजिन चरिउ सिरि अयरवालंकवंसम्मि सारेण । .. 'दहएगपडिमाणपालण सणेहेण । खेल्हाहिहाणेण णमिऊण गुरु तेण । जसकित्ति विणयत्तु मंडिय गुणोहेण । ससिपहजिणेदस्स पडिमा विसुद्धस्स । काराविया मइजि गोवायले तुंग ॥ (अ. १० पृ. १११) For Private And Personal Use Only
SR No.010616
Book TitleBhattarak Sampradaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV P Johrapurkar
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1958
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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