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२१८ भट्टारक संप्रदाय
[५५८ - संजायउ वीरजिणुक्कमेण परिवाडिय जइवर णिहयएण ॥ सिरिदेवसेणु तह विमलसेणु तह धम्मसेणु पुणु भावसेणु ॥ तहो पट्ट उवण्णउ सहसकित्ति अणवरय भमिय जइ जासु कित्ति ॥ तह विक्खायउ गुणकित्ति णामु तवतेए जासु सरीरु खामु ॥ तहो णियबंधउ जसकित्ति जाउ आयरिय पणासिय दोसु वाउ ॥
[अ. ७ पृ. १६३] लेखांक ५५९- रिद्वनेमिचरिउ
गय तिहुयणसयंभु सुरठाणहो जं उव्वरिउ किंपि सुणियाणहो । तं जसकित्तिमुणिहि उद्धरियउ । णिएवि सुत्तु हरिवंसच्छरियउ॥ णियगुरुसिरिगुणकित्ति पसाए । किउ परिपुण्णु मणहो अणुराए॥ सरहसेणेदं सेठि आएसे । कुमरणयरि आविउ सविसेसे ॥ गोवगिरिहे समीचे विसालए । पणियारहे जिणवरचेयालए ॥ भहवमासि विणासियभवकलि । हुउ परिपुण्णु चउहिसि णिम्मलि ॥
[जैन साहित्य और इतिहास पृ. ३९३ ] लेखांक ५६० - आदिनाथ मूर्ति ___संवत १४९७ वर्षे वैसाख .. ७ शुक्रे पुनर्वसुनक्षत्रे श्रीगोपाचलदुर्गे महाराजाधिराज राजा श्रीडूंग(रसिंह) राज्य संवर्तमाने श्रीकाष्ठासंघे माथुरगच्छे पुष्करगणे भ. गुणकीर्तिदेवाः तत्पट्टे भ. यशःकीर्तिदेवाः प्रतिष्ठाचार्य पंडित रइधू तेषां आनाये अग्रोतवंशे गोयलगोत्रे साधु...॥
(अ. १० पृ. ३८०) लेखांक ५६१ - सम्मइजिन चरिउ
सिरि अयरवालंकवंसम्मि सारेण । .. 'दहएगपडिमाणपालण सणेहेण ।
खेल्हाहिहाणेण णमिऊण गुरु तेण । जसकित्ति विणयत्तु मंडिय गुणोहेण । ससिपहजिणेदस्स पडिमा विसुद्धस्स । काराविया मइजि गोवायले तुंग ॥
(अ. १० पृ. १११)
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