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-अटेर शाखा
बलात्कार गण
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इन के बाद विश्वभूषणभट्टारक हुए। आप ने संवत् १७२२ की माघ कृ. ५ को एक सम्यग्दर्शन यंत्र स्थापित किया (ले. ३१४ ) । संवत् १७२४ की वैशाख कृ. १३ को आप ने शौरीपुर में एक मन्दिर की प्रतिष्ठा की ( ले. ३१५ ) । ५७ ज्योतिः प्रकाश के उक्त उल्लेख में विश्वभूषण की भी प्रशंसा की गई है ( ले. ३१६ ) । आप के उपदेश से पंडित हेमराज ने गहेली शहर में सुगंधदशमी कथा लिखी (ले. ३१७ )
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इन के बाद देवेन्द्रभूषण और उन के बाद सुरेन्द्रभूषण भट्टारक हुए | आप ने संवत् १७५७ में ऋषिपंचमी कथा की रचना की ( ले. ३१८ ) । आप ने संवत् १७६० की फाल्गुन शु. १ को एक सम्यग्ज्ञान यंत्र, संवत् १७६६ की माघ शु. ५ को एक षोडशकारण यंत्र, संवत् १७७२ की फाल्गुन कृ. ९ को एक सम्यग्दर्शन यंत्र तथा संवत् १७९१ की फाल्गुन कृ. ९ को अटेर में एक दशलक्षण यंत्र की स्थापना की (ले. ३१९-२२ ) ।
सुरेन्द्रभूषण के शिष्य लक्ष्मीभूषण हुए । इन के शिष्य मुनीन्द्रभूषण को संवत् १८४२ की वैशाख शु. १० को साह लालचंद ने मूलाचार की एक प्रति अर्पित की ( ले. ३२३ ) ।
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लक्ष्मीभूषण के दूसरे शिष्य जिनेन्द्रभूषण हुए। इन के शिष्य महेन्द्रभूषण ने संवत् १८५२ की कार्तिक शु. १ को जिनेन्द्रमाहात्म्य की एक प्रति लिखी (ले. ३२५ ), संवत् १८५८ में ग्वालियर में इन ने पद्मनन्दि पंचविंशति की एक प्रति आचार्य देवेन्द्रकीर्ति के लिए लिखी (ले.३२६ ) । संवत् १८७६ की वैशाख शु. ६ को आप ने एक पार्श्वनाथ मूर्ति स्थापित की ( ले. ३२७ ) ।
५५ मूल में संवत् १२२४ छपा है जो स्पष्टतः गलत है ।
५६ इन की परम्परा में सोनागिरि के पट्ट पर क्रमशः जिनेन्द्रभूषण, देवेन्द्रभूषण, नरेन्द्रभूषण, सुरेन्द्रभूषण, चन्द्रभूषण, चारुचन्द्रभूषण, हरेन्द्रभूषण, जिनेन्द्रभूषण और चन्द्रभूषण भट्टारक हुए ( अनेकान्त व. १० पृ. ३७१ ) ।
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