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बलात्कार गण अटेर शाखा
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इस शाखा का आरम्भ भ. सिंहकीर्ति से होता है । ये भ. जिनचन्द्र के शिष्य थे जिन का वृत्तान्त दिल्ली - जयपुर शाखा में आ चुका है। आप ने संवत् १५२० की आषाढ शु. ७ को एक महावीर मूर्ति प्रतिष्ठापित की (ले. ३०३ ) | यह प्रतिष्ठा इष्टिकापथ" में हुई । आप ने संवत् १५२५ की चैत्र शु. ३ को एक श्रेयांस मूर्ति, संवत् १५२७ की माघ कृ. ५ को एक अन्य मूर्ति, संवत् १५२८ की वैशाख शु. ७ को एक पार्श्वनाथ मूर्ति तथा संवत् १५२९ की वैशाख शु. २ को एक महावीर मूर्ति स्थापित की ( ले. ३०४ -७ ) । संवत् १५३१ की फाल्गुन शु. ५ को क्षुल्लिका आगमश्री के लिए आप ने एक कलिकुंड यन्त्र स्थापित किया (ले. ३०८ ) ।
सिंहकीर्ति के बाद धर्मकीर्ति और उन के बाद शीलभूषण भट्टारक हुए । आप के अम्नाय में संवत् १६२१ की श्रावण कृ. २ को अलवर निवासी गरीबदास ने हीराबाई के लिए यशोधरचरित की एक प्रति लिखी ( ले. ३०९ ) ।
शीलभूषण के पट्टशिष्य ज्ञानभूषण हुए । ज्योतिः प्रकाश के एक उल्लेख से पता चलता है कि आप ने चिरकाल से लुप्त हुए जैन तिथिपत्र की पद्धति को स्पष्ट किया (ले. ३१६ ) ।
इन के बाद जगदुभूषण भट्टारक हुए। आप ने संवत् १६८६ की ज्येष्ठ क्र. ११ को एक सम्यक्चारित्र यंत्र, संवत् १६८८ की फाल्गुन शु. ८ को एक श्रेयांस मूर्ति तथा इसी वर्ष की वैशाख शु. ३ को एक अन्य मूर्ति स्थापित की ( ले. ३१०-१२ ) । आप की आम्नाय में संवत् १६९५ की माघ में शाहजहाँ के राज्य काल में आगरा शहर में शालिवाहन ने हिन्दी हरिवंशपुराण की रचना की ( ले. ३१३ ) ।
५४ यह सम्भवतः इटावा का संस्कृत रूपान्तर है ।
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