________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
बलात्कार गण-ग - नागौर शाखा
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१२३
1
इन के बाद संवत् १७४५ मे भ. रत्नकीर्ति पट्टाधीश हुए तथा २१ वर्ष पर रहे। ये गोधा गोत्र के तथा काला डहरा के निवासी थे ( ले. २९७ ) । इन के उत्तराधिकारी भ. विद्यानंद झाझरी गोत्र के तथा रूपनगर निवासी थे । ये संवत् १७६६ से २ वर्ष पट्ट पर रहे (ले. २९८ ) । इन के शिष्य महेन्द्रकीर्ति संवत् १७३९ से ४ वर्ष तक पट्टाधीश रहे । ये झाझरी गोत्र के तथा काला डहरा के निवासी थे ( ले. २९९ ) । इन के बाद अनन्तकीर्ति संवत् १७७३ से २४ वर्ष तक भट्टारक पद पर रहे । ये पाटणी गोत्र के तथा अजमेर निवासी थे । इन के अनंतर भ. भवनभूषण संवत् १७९७ से ४ वर्ष तक पट्टाधीश रहे । ये छावडा गोत्र के तथा काला डहरा निवासी थे ( ले. ३००- - १ ) । इन के शिष्य विजयकीर्ति अजमेर में संवत् १८०२ की आषाढ शु. १ को पट्टाभिषिक्त हुए थे (ले. ३०२ ) । "
५३
५३ नागौर के पट्टाधीशों की प्रकाशित नामावली ( जैन सि. भा. १ पृ. ८० ) मैं रत्नकीर्ति (द्वितीय) के बाद क्रमशः ज्ञानभूषण, चन्द्रकीर्ति, पद्मनन्दी, सकलभूषण, सहस्रकीर्ति, अनन्तकीर्ति, हर्षकीर्ति, विद्याभूषण, हेमकीर्ति, क्षेमेन्द्रकीर्ति, मुनीन्द्रकीर्ति तथा कनककीर्ति के नाम दिये हैं। इन के कोई स्वतन्त्र उल्लेख प्राप्त नहीं हो सके । वर्तमान समय में इस गद्दी पर भ. देवेन्द्रकीर्तिजी विराज1 मान हैं । आप ने नागपुर, अमरावती आदि विदर्भ के नगरों में भी विहार किया है ।
For Private And Personal Use Only