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बलात्कार गण - दिल्ली-जयपुर शाखा
होता हैं । इन के गुरु
प्रकरण में आ चुका है ।
शारदा
इस शाखा का आरम्भ भ. शुभचन्द्र से पद्मनन्दी थे जिनका वृत्तान्त उत्तर शाखा के शुभचन्द्र का पट्टाभिषेक संवत् १४५० की माघ शु. ५ को हुआ और ५६ वर्ष पट्ट पर रहे। वे ब्राह्मण जाति के थे [ ले. २४६ ] । स्तवन यह उन की एक कृति है [ ले. २४२ ] । उन के शिष्य हेमकीर्ति की प्रशंसा संवत् १४६५ के बिजौलिया लेख में की गई है । संवत् १४८३ की फाल्गुन शु. ३ को उन की परम्परा की आर्यिका आगमश्री की समाधि बनाई गई [ले. २४३, २४४ ] । संवत् १४९७ की ज्येष्ठ शु. १३ को उनके गुरुबन्धु मदनदेव के शिष्य ब्रह्म नरसिंह ने प्रवचनसार की एक प्रति लिखी थी [ले. २४५ ] ।
शुभचन्द्र के बाद जिनचन्द्र भट्टारक हुए । संवत् १५०७ की ज्येष्ट कृ. ५ को आप का पट्टाभिषेक हुआ तथा आप ६४ वर्ष पट्टाधीश रहे । आप बघेरवाल जाति के थे [ ले. २४८ ] | सिद्धान्तसार यह आप की एक कृति है [ ले. २४७ ] । प्रतापचन्द्र के राज्य काल में संवत् १५०९ की चैत्र शु. १३ को धौपे ग्राम में आप ने एक शान्तिनाथ मूर्ति स्थापित की [ले. २५० ] | आप की आम्नाय में संवत् १५१२ की आषाढ कृ. ११ को नेमिनाथ चरित की एक प्रति लिखाई गई जो जिनदास ने घोघा बंदरगाह में नयनन्दि मुनि को अर्पित की [ ले. २५१ ]। संवत् १५१५ की माघ शु. ५ को आप ने एक पार्श्वनाथ मूर्ति स्थापित की [ले. २५२ ] । आप की आम्नाय में संवत् १५१७ को मार्गशीर्ष शु. ५ को झुंझुणपुर में तिलोय पण्णत्ती की एक प्रति लिखाई गई [ले. २५४ ] | इसी प्रकार संवत् १५२१ की ज्येष्ठ शु. ११ को ग्वालियर में पउमचरिय की प्रति लिखाई गई जो नेत्रन्दि मुनि को अर्पण की गई [ ले. २५५ ] । संवत् १५३७ वैशाख शु. १० को जिनचन्द्र की आम्नाय में विद्यानन्द ने एक महावीर
४२ प्रतापचन्द्र का राज्य काल ज्ञात नही हो सका। इस समय के करीब झांसी विभाग मे रुद्रप्रताप नामक राजा का उल्लेख मिलता है ।
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