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लेखांक २७१ - हरिवंशपुराण
भट्टारक संप्रदाय
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[२७१ -
देवेंद्रकीर्ति
तहां श्रीजिनदास जू ग्रंथ रच्यो इह सार । सो अनुसार खुयालले कौ भविक सुखकार || देश ढुंढाढ जानौ सार तामे धर्मतनो विस्तार | बिसनसिंह सुत जैसिंहराय राज करें सबको सुखदाय || ...जामै पुर शांगावति जानि धर्म उपावनकौ वर थान । ...संघ मूलसंघ जानि गछ सारदा बखानि गण जु बलात्कार जाणौ मन लायके || कुंदकुंद मुनीकी आमनाय मांहि भये देवइंद्रकीरत सुपट्टसार पायके | पंडित सु भए तहां नाम लछिमीसुदास चतुर विवेकी श्रुतज्ञानको उपायके || तिनै थकी मै भी कछू अल्पसो सुज्ञान लयो फेरि मै atit जिहानाबाद मध्य आयकै ॥ "महमदशा पातिशाह राज करि है सुचकत्थौ । नीतिवंत बलवान न्याय विन ले न अरत्थौ ॥ ...संवत सतरास अरु असी सुदि वैसाख तीज वर लसी । सुक्रवार अतिही शुभ जोग सार नखत्तरकौ संजोग ॥
( भा. ६ पृ. १२७ )
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लेखांक २७२
१ मूर्ति
संवत्सरे वह्निवसुमुनदुमिते १७८३ वैशाखमा से कृष्णपक्षे अष्टमीतिथौ बुधवारे श्रवणनक्षत्रे बांसखोहनगरे अंबावती सामी कुछाहागोत्रीय महाराजाधिराज श्रीजयसिंघ जित्तत्सामंत कुंभाणीगोत्रीय राजिश्री चूहडसिंहजी राज्य प्रवर्तमाने श्रीमूलसंघे नंद्यान्नाये भ. श्रीजगत्कीर्तिदेवाः तत्पट्टे भ. श्रीदेवेंद्रकीर्तिदेवाः तदाम्नाये खंडेलवालान्वये लहाड्या गोत्रे साहश्री रामदासजी तद्भार्या रायवदे ॥
[ भा. ७ पृ. १३]