________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
भट्टारक संप्रदाय
[१६१ - लेखांक १६० - नंदीश्वर आरती
नर्तत पूजन सहित इंद्रादिक यात्रा प्रति वर्षे । श्रीवृषचंद्र पदेश्वर देवेंद्रकीर्ति नमे हर्षे ॥ ३
(आरती संग्रह २, च. १९२५) लेखांक १६१ -- देवेंद्रकीर्ति गुरु पूजा
सत्शब्दागमशास्त्रपाटनपटुश्रीकुंदकुंदो यती तत्पट्टान्वयके वृषेदुरभवद्धर्मादिभूषस्ततः । विख्यातः सुविशालकीर्तिरतुलः श्रीधर्मचंद्रस्ततः तत्पट्टे जयति प्रसन्नहृदयो देवेंद्रकीर्तिर्मुनिः । .. 'धर्मचंद्र पटि रयन गणित सुभ शास्त्र वखाणो ।
देवेंद्रकीर्ति गछराज आंगि तृणांवर धरण ॥ वाग्वादिनी कंठी वसी गोतम सम गुरु अवतन्यो। बुद्धिसागर एवं वदति विकट भवार्णवते तन्यो ।। ''देवेंद्र कीर्ति मुनिपति परिग्रह तसु बहु अंगे। कह गुणवर्णन करू नही आवे मन संगे । आत्मध्यान मोहित सदा सिव साधन आशा करी । सुरत शहर चवमासमे रूपचंदने स्तुति करी ॥ . . 'ज्याको पिता बनारसी आगराको वासी ।
सुरत शहरमे उदीमके लीयते । वराडके मुनिंद आये रहे बरखाकालमाहे.
वंदना नही कीनही देखी परीग्रहते ॥ सुद्धज्ञानसो निहार तुर्य काल मन विचार
काय मन वचनसो चिदानंद लहेते । ऐसे दवेंद्रकीर्ति जिवनदास करत बिनती संभाल लेवो परभवमे मोह निकट आयते ।।
( म. १२७) लेखांक १६२ - अनंत आरती
रस सिंधु षट् चंद्र शकेसी।
For Private And Personal Use Only