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श्लो. १५:१६
१२.परिवतेन
परिस्थितियो का परिवर्तन सृष्टि का क्रम है परतु हृदय का परिवर्तन सृष्टि का सामजस्य है। परिस्थितियो का परिवर्तन प्रकृति का न्याय है। परन्तु हृदय का परिवर्तन प्रकृति का प्रकट होना है, विभाव से स्वभाव मे आना है। न्याय का चाहा-अनचाहा स्वीकार होता है परन्तु प्रकट चाह-अनचाह से ऊपर रहता है। विसगतियो से परिपूर्ण इस जीवन मे क्रम का विकास होता रहता है। सामजस्य सगति या विसंगति मे समानरूप से रहता है।
यहा हृदय परिवर्तन का मतलब वृत्ति और भावों का परिवर्तन है। वरना आजकल डाक्टर भी Surgery द्वारा HeartChange करते हैं। परतु यहाँ हमारी चेतना, भाव और वृत्तियो का परिवर्तन होता है। इस परिवर्तन से वास्तव मे हृदय सजीव होता है, जीवत होता है, गतिवान होता है। यह पौद्गलिक या पार्थिव हृदय की बात नहीं है। परतु आत्मिक भावो के स्रावो का कथन है। ____ भक्ति वृत्ति परिवर्तन की शल्य चिकित्सा है। आचार्य श्री भक्तामर स्तोत्र द्वारा भक्ति का पथ प्रदान कर रहे हैं।
परमात्मा मे एकरूप होकर उनके सहज स्वाभाविक निर्विकार स्वरूप के दर्शन पा रहे हैं। परमात्मा के तेजोमय स्वरूप मे लीन उनके मुख से निकला
चित्र किमत्र यदि ते त्रिदशाङ्गनाभिर्नीतं मनागपि मनो न विकारमार्गम्।
कल्पान्त-काल-मरुता चलिताचलेन,
किं मन्दरादिशिखरंचलितं कदाचित्॥१५॥ (भगवन्)
- (हे प्रभो) यदि
- अगर - तुम्हारा
- मन त्रिदशाङ्गनाभि
देवाङ्गनाओ के द्वारा अर्थात् देवलोक की अप्सराओ
द्वारा मनाक् अपि
किचित भी, थोड़ा भी
मन