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भगवती सूत्र को सूक्तियां
इकहत्तर २७ जिसके अन्तर मे माया का अग है, वहीं विकुर्वणा (नाना रूपो का
प्रदर्शन) करता है । अमायी-(सरल आत्मा वाला) नही करता । २८. आत्माओ के कर्म चेतनाकृत होते हैं, अचेतना कृत नही ।
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आत्मजागरण की दृष्टि मे नारक जीव सुप्त रहते हैं, जागते नही ।
३० आत्मा का दुख स्वकृत है, अपना किया हुआ है, परकृत अर्थात् किसी
अन्य का किया हुआ नहीं है। ३१ तप, नियम, सयम, स्वाध्याय, व्यान, आवश्यक आदि योगो में जो यतना
विवेक युक्त प्रवृत्ति है, वही मेरी वास्तविक यात्रा है।