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भगवतो सूत्र को सूक्तियां
१ आत्मसाधना मे अप्रमत्त रहने वाले साधक न अपनी हिसा करते हैं, न
दूसरो की, वे सर्वथा अनारभ-अहिसक रहते हैं।
२. ज्ञान का प्रकाश इस जन्म में रहता है, पर जन्म मे रहता है, और कभी
दोनो जन्मो मे भी रहता है ।
३ अस्तित्व अस्तित्व में परिणत होता है और नास्तित्व नास्तित्व मे परिणत
होता है, अर्थात् सत् सदा मत् ही रहता है और असत् सदा असत् ।
४ आत्मा स्वय अपने द्वारा ही कर्मों की उदीरणा करता है, स्वय अपने
द्वारा ही उनकी गह-आलोचना करता है, और अपने द्वारा ही कर्मों
का सवर-आश्रव का निरोध करता है । ५ अजीव-जड पदार्थ जीव के आधार पर रहे हुए है, और जीव (ससारी
प्राणी) कर्म के आधार पर रहे हुए है।
६ शक्तिशाली (वीर्यवान्) जीतता है और शक्तिहीन (निर्वीर्य) पगजित हो
जाता है।