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सुत्तनिपात को सूक्तिया
तिरानवे ५६. छोटी नदिया शोर करतो वहती है और बडी नदिया शान्त चुपचाप
वहती हैं। ६०. जो अपूर्ण है वह आवाज करता है, नीर जो पूर्ण है वह शात मौन
रहता है। मूर्ख अधभरे जलघट के समान है और पडित लबालब भरे जलाशय के समान ।
६१. जो कुछ भी दुख होता है, वह सब तृष्णा के कारण होता है ।
६२. दूसरो ने जिसे सुम्ब कहा है, पार्यो ने उसे दुख कहा है । आर्यों ने जिसे
दु.ख कहा है, दूगरो ने उसे सुख कहा है ।
६३. मोहग्रस्तो के लिए सब ओर अज्ञान का तम ही तम है, अन्वो के लिए
सब ओर अन्धकार ही अन्धकार है।
६४. अल्प जल वाले मूखने जलाशय की मछलियो की तरह अज्ञानी तृष्णा के
वशीभूत होकर छटपटाते है ।
६५ जो मनुष्य विना पूछे अपने शील व्रतो की चर्चा करता है, भात्म प्रशसा
करता है, उसे ज्ञानियो ने अनायं धर्म (निम्न आचरण) कहा है ।
६६. जो अपनी दृष्टि (विचारो) के फेर मे पडकर दूसरो को हीन समझता
है, इसे कुशलो (विद्वानो) ने मन की गाँठ कहा है ।
६७. जिस प्रकार कमल के पत्ते पर पानी नहीं टिकता, उसी प्रकार मुनि
दृष्टि, श्रुति, एव धारणा मे आसक्त नहीं होता।
६८. वाद करने वाले वादी प्रतिवादी सभा में जाकर एक दूसरे को मूर्ख बताते