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उदान को सूक्तियां
तिहत्तर ४६. शीलरहित दु शील व्यक्ति मृत्यु के क्षणों में विमूढ हो जाता है, घवडा
जाता है। ४७. अज्ञजन वेड़ा वांधते ही रह गये, और ज्ञानी जन ससारसागर को पार
भी कर गये।
४८ पण्डित जन अज्ञजनों के साथ हिल मिलकर रहते हैं, साथ-साय चलते हैं,
फिर भी उनके दुर्विचार को वैसे ही छोडे रहते हैं, जैसे क्रौंच पक्षी दूध पोकर पानी को छोड़ देता है ।
४६. जिनका कही भी किसी से भी राग नहीं है, उनको कोई भी दुग्व नही