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आचारांग की सूक्तियाँ
१ यह मेरी आत्मा श्रीपपातिक है, कर्मानुसार पुनर्जन्म ग्रहण करती है .
आत्मा के पुनर्जन्मसम्बन्धी सिद्धान्त को स्वीकार करने वाला ही
वस्तुत आत्मवादी, लोकवादी, कर्मवादी एव क्रियावादी है । २ यह आरम्भ (हिंमा) ही वस्तुत ग्रन्थ=बन्धन है, यही मोह है, यही
मार=मृत्यु है, और यही नरक है ।
३ जिस श्रद्वा के माय निष्क्रमण किया है, साधनापथ अपनाया है, उसी
श्रद्धा के साथ विस्रोतसिका (मन की शका या कुण्ठा) से दूर रहकर
उसका अनुपालन करना चाहिए । ४ जो लोक (अन्य जीवसमूह) का अपलाप करता है, वह स्वय अपनी आत्मा का भी अपलाप करता है ।
जो अपनी आत्मा का अपलाप करता है, वह लोक (अन्य जीवममूह) का भी अपलाप करता है। ५ सतत अप्रमत्त जाग्रत रहने वाले जितेन्द्रिय वीर पुरुपो ने मन के समग्र
द्वन्द्वो को अभिमूत कर, सत्य का साक्षात्कार किया है । ६ जो प्रमत्त है, विषयासक्त है, वह निश्चय ही जीवो को दण्ड (पीडा) देने
वाला होता है।