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हुए हैं। प्राचीन काल में ही तथागत के उपदेगप्रधान वचनो का मारसग्रह धम्मपद में किया गया है, जिसके भारतीय तथा भारतीयेतर भापाओ मे अनेक बनवाद हो चुके हैं।
भगवान बुद्ध के उपदेशप्रद वचनो का नग्रह करते समय अनेक संग्रह मैंने देवे। कुछ नग्रह मिर्फ अनुवाद मोत्र थे, कुछ मूल पानि मे । वह भी कुछ धम्मपद, मुननिपान आदि दो चार गधों तक ही मीमित थे, अत उनमे गेरी कल्पना पन्तृिप्त नहीं ह, नो सम्पूर्ण बौद्ध वाइ मय का आनोटन कर गया,
और जो मोनिका बहुमूल्य विचारमणिया प्राप्त हुई वे बाद धारा के रूप मे पाठको के समक्ष प्र तुन की हैं।
पानि बोर बाट मय मे विमुनिमग्गो का भी महन्वपूर्ण स्थान है । लाचायं वुदघोष नी यह गति आध्यात्मिक चिनार सितन के दोत्र मे बहुत वही देन है । त्रिपिटक नाहित्य मे परिगणित नहीं होने पर भी, उमवा महत्त्व कुछ कम नहीं है। नी देन पग्लन मकान मे विमुन्द्धि मग्गो के सुवचनो को मगृहीत करने का लोन भी मैं गवरण नहीं कर गका । कुल मिलाकर बौद्धमाहित्य के मुन्य मृन्य ग्रन्यो का सम्पर्ग करती हुई यह धारा अपने आप मे प्राय. परिपूर्ण-सी है। • वैदिक धारा
यह तो प्राय म्पष्ट है कि उपलब्ध भारतीय वाडमय मे वैदिक वाट मय मर्वाधिक प्राचीन एव विशाल ही नहीं, अपित भारतीय जीवनदर्शन एव चिन्तन की ममग्रता का भी प्रतीक है। ___ ऋग्वेद से लेकर स्मृतिकाल तक का दर्शन, चिन्तन, जीवन के विविध परिपावों को नव स्फूर्ति एव नव चैतन्य से प्रबुद्ध करता हुआ जोवन मे उल्लास, उत्साह, सन्सकल्प एव कर्मयोग को स्फुरणा जागृत करता है, तो वैराग्य एवं अध्यात्म की दिव्य ज्योति भी प्रज्ज्वलित करता है।
वैदिक वाइ मय के विशाल मूक्तिकोप के प्रति मेरे मन मे बहुत समय से एक आकर्पण था । वैदिक सूक्तियो मे अध्यात्म, वैराग्य, लोकनीति एव अनुभव का जो मधुर सम्मिश्रण हुआ है, उससे सूक्तियो मे एक विलक्षण चमक एव अद्भुत हृदयग्राहिता पैदा हो गई है। वैदिक साहित्य की सूक्तियो के अनेक सस्करण अब तक निकल चुके है, उनको भी बहुत कुछ मैंने देखा है । कुछ वेदो