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अधिक विस्तार न हो, इसलिए यहां सिर्फ सकेत कर रहा हूँ। शेप पाठक स्वय तुलना कर सकते है, और साथ ही यथा प्रसग अन्यान्य स्थलो का अनुसधान भी । तुलना की दृष्टि से कुछ स्थल दिए जा रहे हैअप्पा मित्तममित्त च।
(जैन धारा १११११४) अत्ता हि अत्तनो नाथो।
(बौद्ध धारा ५४।३२) आत्मैव ह्यात्मनः वन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः ।
(वैदिक धारा २७२।४३) जो सहस्सं सहस्स्सारण सगामे दुज्जए जिए ।
(जैन धारा २०८।६०) यो सहस्सं सहस्सेन संगामे मानुसे जिने ।
(बौद्ध धारा ५१।२१) जरा जाव न पीडेइ""""ताव धम्म समाचरे ।
(जैन धारा ६०५३) यावदेव भवेत् कल्पस्तावच्छेयः समाचरेत् ।
(वैदिक धारा २५०।४६) सुव्वए कम्मइ दिवं।
(जैन धारा १०४।४३) रोहान् रुरुहुर्मेध्यास.।
(वैदिक धारा ११८।४४) अन्नाणी किं काही?
(जैन धारा ८४११२) कथा विधात्यप्रचेता ।
(वैदिक धारा १०३७) यद्यपि मैं इस विचार का आग्रह नही करता कि सूक्तित्रिवेणी का यह सक नन अपने आप मे पूर्ण है। बहुत से ऐसे सुभापित, जो मेरी दृष्टि मे अभी