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उत्तराध्ययन की सूक्तियां
१. जो गुरुजनो की आज्ञाओ का यथोचित पालन करता है, उनके निकट सपर्क मे रहता है, एव उनके हर सकेत व चेष्टा के प्रति सजग रहता है -- उसे विनीत कहा जाता है ।
जिस प्रकार सडे हुए कानो वाली कुतिया जहाँ भी जाती है, निकाल दी जाती है, उसी प्रकार दु गील, उद्द ड और मुखर - वाचाल मनुष्य भी सर्वत्र धक्के देकर निकाल दिया जाता है |
३
जिस प्रकार चावलो का स्वादिष्ट भोजन छोडकर शूकर विष्ठा खाता है, उसी प्रकार पशुवत् जीवन विताने वाला अज्ञानी, शील - सदाचार को छोडकर टु शील- दुराचार को पसन्द करता है ।
४ आत्मा का हित चाहने वाला मावक स्वयं को विनय = सदाचार मे स्थिर करे ।
५ अर्थयुक्त ( सारभूत) वातें हो ग्रहण कीजिये, निरर्थक वातें छोड दीजिये |
६. गुरुजनो के अनुशासन से कुपित = क्षुब्ध नहीं होना चाहिए ।
७. क्षुद्र लोगो के साथ संपर्क, हंसी मजाक, क्रीडा आदि नहीं करना चाहिए ।