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श्री केशरी चन्द भंडारी के पत्र १०. एक प्राकृत कोष की भी जरूरत है। इस दिशा में भी योग्य प्रयत्न होना आवश्यक है। इस बारे में एक जगह कार्य हो रहा है परन्तु अभी उसको अच्छा स्वरूप प्राप्त नही हुआ है।
११. यूरोप के विद्वानों ने जैन धर्म पर जर्मन, फ्रेंच, इटालियन इंग्लिश आदि भाषाओ मे अनेक लेख लिखे है। वे बड़े महत्व के है, वैसे ही उनमे बहुत सी भूलें भी है । सो उनका अनुवाद हिन्दी में होना चाहिये । वह भी एक वडा साहित्य का अग है । इनमें जो भूलें हैं व उनके लेखको के आगे लाकर उनकी उनसे दुरस्ती करवानी चाहिये । व सब लेखो का अनुवाद करवा कर उनका प्रसार चारों ओर करना चाहिये। ___ मैं इस बारे में कई बरसो से विचार कर रहा था। परन्तु कुछ तो प्रमाद से और कुछ ऐसे लेखो की दुर्लभता से कुछ भी नहीं बन सका। अव एक डेढ महिने से मैंने इन अग्रेजी लेखो का अनुवाद करना शुरू किया है। फिलहाल मे जाकोवी के श्री उत्तराध्यायन व श्री सूत्र कृतांग के अंग्रेजी अनुवाद की प्रस्तावना का अनुवाद करना मैंने शुरू किया है। व नजदीक नजदीक आधी की प्रस्तावना का अनुवाद हो भी गया है । यदि अनुवाद करने का विचार आपको पसन्द हो, और मुफीद मालूम हो तो यह काम मैं यथावकाश करना चाहता हूँ। लेख तो बहुत हैं। उन सवका अनुवाद मैं अकेला नही कर सकू गा, परन्तु मुझे जितना समय मिलेगा उतने में मैं करके और अनुवाद दूसरे से करा लूगा । मात्र आपको मुझो पूना लायब्रेरी से, योरोपीय भाषा में जैन धर्म पर कौन कौन सी किताबो मे लेख है यह देखकर एक यादी तयार कराले व उनमे से कौन से लेख महत्व के अनुवाद के योग्य हैं, यह भी ठहरालें। फिर इस बारे मे प्रयत्न किया जा सकेगा । कुछ लेखो के नाम मैं आपको पीछे से भेजूगा । वे आप प्राप्त करके मुझे कृपा पूर्वक लिखें। __ मेरे ये विचार मैंने साराश रूप से लिखे। यह सिर्फ़ रूपरेखा ही समझिये । अगर इतना ही हो जावे तो बहुत कुछ फायदा होगा।