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श्री काशीप्रसाद जायसवाल के पत्र
१४३ सवस सतिकं तु भिदति तमर देह संघातं ।" जिनको दंभ देने वाला दंभापनं तेरह सो वर्ष वाला तमर (सीक्ष) की. मूर्ति उसने तोड़ी ? • जिनपद नही जिनसद है ।
परवीन ससते हि का अर्थ मैंने प्रक्षीण सस्मृत=जन्मान्तर मुक्त (प नहीं स निकाला है) मैंने किया है। वह अर्थ आपके अर्थ से मिलता है। यापजावक के पढ़ते कुछ सदेह की जगह नहीं पर पटना जाने पर देखूगा । Cast एक दो जगह छोड़कर ठीक उतग है । आप आइये । मेरे यहाँ पधारिये और साथ मे Cast पढिये। तब मेरी मेहनत का भी अन्दाज हो जायगा । जिवदेह सिरिका परिखिता-जिन देव श्री का परिक्षिता (खारवेल सिरिता) पक्ति (मे - मधुरं अपयातो) के बाद यवनराज डिमित Greek King Dimituos मिला है। इस वार हिन्दी में भी संस्करण कर दूंगा। यदि आप आवें तो रोके रहूँ। आप हम मिलकर कर डालें।
मेरे बंगले से अलग एक अतिथि भवन बनाया है उसमे आराम से रहियेगा और साथ मे राजगह आदि चलेगे ।
अभिन्न
काशीप्रसाद राजभीतिनि भी साफ है । जव आइयेगा दिखा दूं। मुझको मालुम पडता है कि पूर्व मैं खारवेल के समय में पूर्व जन्म मे था। मैं एक मास मे लौटूंगा। -
(२०)
Patna
15-10-30 प्रियवर मुनि जी,
आप शान्ति निकेतन जा रहे है । आप रास्ते में यहां होते जाइयेगा। Politics छोड़ आप इसी पठन-पाठन ने लगिये । कान्फरेन्स यहाँ होगा। उसमे भी आइये ।