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मेरे दिवंगत मित्रों के कुछ पत्र
यह भी एक टेड़ी पंक्ति है | लगती नही । खारवेल वंश इस तरह है ।
पं० १ | ऐलेन (ऐ रे न नही)
}{
१४२
{
| चेति = चेदि
=
(१६)
}
बस
संदेह नही, कलिंगजिन - सन्निवेश
खारवेल उपासक जैन थे इसमें मगध से वापस ले आये, कुमारी पर्वत ( खण्ड गिरि) पर रत - उपास खारवेल ने अपने शरीर और जीव की परीक्षा ली ।
आपका पत्ता मुझे राय कृष्णदास बनारस वाले से मिला ।
आपका
काशीप्रसाद जायसवाल
पटना
भादवा सुद १५ २६-८-२७
माननीय मुनिवर,
कृपा पत्र मिला । आपको लिखने के बाद मैं बराबर लेख में मेहनत करता रहा। तीन मास तक मेरे उपर यह लेख भूत सा सवार था । दूसरा काम-धाम, खाना-पीना छोड इसके पीछे लगा रहा । बड़े विघ्न पड े, पर किसी की परवाह न थी । मेरा काम पूरा हो गया । लेख प्रेस मे गया है ।
सन् १९ में फिर खण्ड गिरि गया था । सन् २४ में पटने में काष्ट आदि से Revision का Revision किया । यह दोनों काम राखालदास जी बनर्जी के साथ हुये । फिर अत्र प्र ेस में फिर लेख पढ़ तीन मास तक मेहनत की । सन् १६ की फल छापते २ इतनी देर हो गई । प्रूफ आते ही आपके पास भेजूंगा । लिखता हूँ ।
भेजने के वक्त मेहनत का
इस बीच यहां कुछ
अपराज निवेसितं वाली पक्ति में निकला "जिनस दंभावनं च तेर