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किंचित् प्राक्कथन
वास्तव में इस प्रस्तुत पत्र संग्रह मे सर्व प्रथम श्री द्विवेदीजी के पत्रों को ही स्थान देना था परंतु पत्रावली जब छपने भेजी तो उस समय द्विवेदी जी के ये पत्र इधर उधर हो जाने से हाथ नहीं आये थे। अतः प्रारम्भ में अन्यान्य मित्रो के पत्र छपने को भेज दिये ।
राष्ट्रभाषा हिन्दी के जिन-जिन प्रेमी और विद्वान् लेखको को स्वर्गस्थ द्विवेदीजी के महान् व्यक्तित्व और कृतृत्व की यथार्थ परिकल्पना है उनके लिये श्री द्विवेदीजी के लिखे गये और उनके स्वहस्ताक्षरों से अंकित ऐसे पत्रो का कितना महत्व है और जिस व्यक्ति को उनके ये पत्र प्राप्त हुये है उसके लिये ये कैसे अमूल्यनिधि एव चिरस्मृति के द्योतक हैं, वे ही इसे समझ सकते है। मैं द्विवेदीजी के पत्रो को अपने जीवन की एक सर्वोत्कृष्ट स्मृतिनिधि मानता हूँ
प्रस्तुत पत्र सग्रह में जिन दिवगत मित्रो के पत्रो का सग्रह हुआ है उसमे कोई विषय या समयक्रम की दृष्टि नही रही है। इस प्रकार के हिन्दी, गुजराती, मराठी तथा अग्रेजी आदि भापाओं मे लिखे गये अनेक विद्वान मित्रो के सैकड़ो पत्र मेरे पास पड़े हैं। इन सवका एकत्र सग्रह छपाना बहुत बड़ा काम है और वह अब मेरे इस अवशिष्ट अल्प जीवन काल मे सम्भव नहीं है। कोई तीन चार वर्ष से इन पत्रो को प्रकाशित करने का मेरा मनोरथ बना परन्तु यथायोग्य साधनाभाव के कारण उचित ढग से कार्य शुरु नही किया जा सका। दो वर्ष पूर्व जीवन कथा के लिखने का प्रारम्भ हुआ तो उसके साथ इन पत्रों को भी वारम्वार देखने की आवश्यकता महसूस हुई क्योकि जीवन की विगतप्रायः प्रवृत्तियो का सिंहावलोकन, इन पत्रो के आधार पर ही निर्भर था। उसी समय जीवन कथा की जो भूमिका प्रकाशित करने का प्रायोजन किया, उसीके साथ एक अलग पुस्तिका के रूप में उक्त प्रकार के अनेक पत्रो मे से कुछ विद्वानो के पत्र भी अलग से छाटे; और उनको भी साथ मे छपने के लिये प्रेस में भेज दिये। कोई दो वरस के प्रयास के बाद जीवन कथा की भूमिका गत अगस्त मास