________________
बाबू पूरणचन्द जी नाहर के पत्र
५३
आगे केसरिया नाथ जी के विषय में जो कुछ दिगम्बरी लोग प्रकाशित कर रहे हैं, वे आपके देखने में आते ही होगे। उन पर भी आपका विचार जानने के लिये मुझे स्वतः उत्कंठा रहती है। यदि कृपा हो तो उस तीर्थ के वहां के मन्दिर और मूल नायक जी के बाबत आपका स्वतंत्र अभिमत प्रकट करें, तो विशेष आभारी होऊंगा। __ मागे मेरी स्त्री का स्वास्थ्य भी इधर महिनो से बहुत खराव रहने के कारण उसे डाक्टरो की राय से रांची वायु परिवर्तन के लिये भेजा है। उसकी तपस्या के उजमणे में पट्टावली प्रकाशित करने की जो व्यवस्था हुई थी और आपने सहर्ष परिश्रम उठाना स्वीकार किया था, उसके विषय में कई वार हम लिख चुके है, वह पुस्तक जल्दी ही प्रकाशित करवा देने के लिये उनका विशेष आग्रह है। अत. निवेदन है कि उस पर भी शीघ्र ध्यान दें। जैसी कृपा है बनी रखें. ज्यादा शुभ ।
द : पूरणचन्द की वन्दना अवधारिएगा
(२९) P. C. Nahar M, A, B. L. 48 Indian Mirror Strret Vakil High Court
Calcutta Phone 2551
4-9-1927 श्रीमन् विद्वद्वराग्रगण्य आचार्य महाराज श्री जिन विजय जी महाराज की पवित्र सेवा में श्री संवत्सरी सम्बन्धी मन वचन काया से सविनय क्षामनान्तर निवेदन है कि मेरा भेजा हुआ "जैन लेख संग्रह द्वितीय भाग" का प्राप्ति सूचक आपका कृपा पत्र यथासमय मिला। पट्टावली का अवशिष्ट कार्य शीघ्र ही हाथ में लेने की लिखी, आशा है कि इस स्वीकृति को स्मरण रखेंगे। और अवकाश मिलने के साथ ही कॉपी तैयार करने का प्रयत्न करेंगे फिर प्रेस में भेज कर छपवाने में आपको विशेप कठिनाई या कष्ट न होगा।
आगे आज दिन डाक से 'जैन साहित्य संशोधक की इस बार की सख्या मिली, परन्तु जब तक यह देवाक्षर में प्रकाशित न होगा, मुझे