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। परोपकार का अर्थ किसी की कुछ आर्थिक सहायता कर देना अथवा गिरे हुए को उठा देना मात्र ही नही हैं । परोपकार की यह व्याख्या, या परिभाषा अब पुरानी पड चुकी है। आज का प्रबुद्ध युग-चिन्तन इससे आगे बढ गया है। यदि हम इस पुरानी व्याख्या अथवा परिभाषा को ही पकड कर चलेंगे, तो इसका अर्थ तो यही हुआ कि पहले आप लोगो के गिरने की प्रतीक्षा कीजिए या उन्हें गिरने दीजिए और फिर परोपकार के नाम पर उन्हे उठाने के लिए आगे बढिए । आज का प्रबुद्ध युग-चिन्तन कहता है कि आप किसी व्यक्ति के गिरने की स्थिति ही मत आने दीजिए। क्यो न पहले से ही समाज मे ऐसी व्यवस्था कर ली जाए कि किसी के गिरने की सम्भावना ही न रहे । सामाजिक व्यवस्था की स्थापना मनुष्य के अपने हाथ है । समाज रचना उसकी अपनी देन है। वह इसमे मन चाहा परिवर्तन ला सकता है। इसलिए नव युग चिन्तन के सन्दर्भ मे नव समाज रचना तथा नव परिभापाओ का प्रकाश आने दीजिए। कुछ नए प्रतिमान स्थापित होने दीजिए।
चिन्तन-कण | ३५