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O जब तक मनुष्य का स्वय का अपना स्वतन्त्र चिन्तन नही होगा, वह समाज को कुछ दे सकेगा दिशा बोध के रूप मे, ऐसी आशा करना व्यर्थ है। इसलिए आज की सबसे बडी आवश्यकता है व्यक्ति के लिए स्वतत्र रूप से सोचने समझने की, वैज्ञानिक रूप से चिन्तन करने की। अभी तक हमारे चिन्तन की रोशनी को बधे बंधाए रूप मे अतीत से चले आ रहे विचारो का रहस्यमय कुहासा 'ढके चला आ रहा है । स्वतत्र वैज्ञानिक चिन्तन ही रहस्य-का भेदन कर सकता है और उपलब्धियो के मार्ग खोल सकता है। आज के बुद्धि-कौशल पूर्ण युग मे आवश्यकता है, व्यक्ति वैज्ञानिक स्वतत्र चिन्तन की दिशा में अपने कदम बढाए। जब तक मनुष्य का स्वय का चिन्तन नही होगा किसी भी विषय में, तब तक उसके अभ्युदय की बातें केवल कल्पना लोक की सैर मात्र ही है। यथार्थ के कठोर धरातल पर टिकने के लिए स्वतत्र चिन्तनशील व्यक्तियो की ही आवश्यकता होती है। स्वतत्र चिन्तन की आवश्यकता और महत्ता को समझिए तथा इस दिशा में अपने कदम बढाइए । स्वतत्र चिन्तन से आपका मार्ग प्रकाशित हो उठेगा। पथ के नुकीले कांटो एव गढो से आप स्वयमेव ही बचते चले जाएंगे। स्वतत्र चिन्तन की ओर अपने विचारो की वल्गा को मोडिए । फिर दिशा-बोध आप स्वयं ही पा जायेंगे । सही सोचना सही कर्म के रास्ते खोल देता है।
चिन्तन-कण | २९