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- जो अपनी दुर्बलताओ से परिचित है, वह कभी न कभी अपने को उनसे पृथक् भी कर सकता है। उनको अपने अन्तर से निकाल बाहर भी कर सकता है। जो झूठे घमण्ड एव मिथ्या अह को पालकर यह समझता है कि मुझमे कही कोई दुर्बलता है ही नही, मै पूर्ण हूँ, तो फिर वह नई बात कहां सीख पाएगा, क्यो सीख पाएगा? मिथ्या अभिमान के चौखटे मे फिट अपनी कुरूप तस्वीर को ही वह सर्व सुन्दर एव सर्वश्रेष्ठ कलाकृति मानने के व्यामोह मे ही उलझा रहेगा। इस हालत मे जीवन-विकास के मार्ग से वह कोसो दूर पिछड़ जायेगा। भविष्य मे जाकर यह पिछडन उसके लिये एक अभिशाप बन सकती है।
२४ | चिन्तन-कण