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O ससार का कोई भी पदार्थ न हमे वांधता है, न हमे मुक्त करता है । और तो क्या, भगवान भी किसी का बुरा या भला नहीं कर सकते । जो कुछ भी है सब हमारी भावना पर ही निर्भर है । भावना ही ससार का हेतु है, और यही है मुक्ति का हेतु भी । चमत्कार मनुष्य की अपनी भावना का है, वाह्य वस्तु का नही । "यादृशी, भावना यस्य सिद्धिर्भवति तादृशी।" "जाकी रही भावना जैसी प्रभु सूरत देखी तिन तैसी।"
वस्तु स्वभाव को मत देखिए । मत उसे दोप दीजिए। वस्तु हमे कुछ भी प्रदान नही करती। यह तो हमारा मनोभाव है, जो वस्तु को निमित्त मानकर अपने अन्दर से ही जागृत होता है।।
२२ / चिन्तन-कण