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विश्व मे उभरती जा रही अनेकानेक व्याधियो के लिए नित नये औषधोपचारो का आविष्कार हो रहा है । अनेकानेक क्लिनिक खुल रहे हैं इसके लिए अनेक अनुसधान शालाएँ दिन रात नए-नए आविष्कारो को जन्म दे रही हैं । इसीलिए शारीरिक दृष्टि से ग्णता का अनुपात आज घट रहा है, स्वस्थता वढ रही है । अनेक असाध्य वीमारियो को समाप्त प्राय कर देने का आज दावा किया जा रहा है चिकित्सा विशेषज्ञो द्वारा, जो किसी सीमा तक ठीक भी है ।
परन्तु यह वर्तमान पीढी का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि शारीरिक रुग्णता घटने के साथ वैचारिक रुग्णता वढती जा रही है उसमे | आज वैचारिक दृष्टि से व्यक्ति नित्य दुर्बल होता जा रहा है । यही कारण है आज का युवावर्ग आक्रोश एव पथभ्रष्टता का शिकार वन गया है । वर्तमान पीढी के असन्तोष का कारण यही वैचारिक रुग्णता है । हिप्पीवाद की जनक यह वैचारिक रुग्णता ही तो हैं। मनुष्य का चिन्तन भटक जाता है उसके कारण | उसका प्रवुद्धमन गलत दिशा पकङ लेता है । इसीलिए कहना पडता है उसके खोये गए दिशा-वोध को देखकर कि शारीरिक रोग की अपेक्षा मानसिक अथवा वैचारिक रोग अधिक खतरनाक है । जिसके अनुकूल उपचार की आज जल्दी से जल्दी आवश्यकता है |
१० | चिन्तन-कण