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- कृषक जब बीज बोने की तैयारी करता है तो वह भूमि को सर्व प्रकार के घास-पात से मुक्त कर लेता है। फिर उसमे बीज डालता है। उसका यह श्रम एक दिन अपना रंग लाता है। कृषक का जीवन प्रसन्नताओ से भर उठता है, जव उसके घर मे फसल की पहली खेप पहुंचती है। __ यही बात हमारे जीवन के सम्बन्ध मे भी है। यदि हमे अपनी अन्तर्भूमि मे परमानन्द रूप परमात्म भाव का वीज बोना है तो अपनी मनोभूमि को सर्व प्रकार के काषायिक भावो के कटीले घास-पात एव झाड-झखाडो से मुक्त करना होगा। साथ ही परपरागत शब्दो एव सिद्धान्तो से चित्त जितना स्वतत्र होगा, सत्य के लिए उसके द्वार उतने ही मुक्त हो जाते है। केवल मुक्त चित्त ही मुक्ति की अनुभूति करने में समर्थ हो सकता है। 0
चिन्तन-कण | E