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0] जीवन है, तो द्वद्व भी हैं। सासारिक अवस्था में रहते हुए मानव द्वन्द्वो से अतीत नही हो सकता । हां, उन्हें झेलने एव सहन कर जाने की क्षमता को जागृत करने के लिए मानव को सहज सयम तथा तपस्त्याग की कठिन-कठोर भूमि से होकर गुजरना होगा। जब तक ऐसा नहीं होगा तब तक द्वन्द्व मानव-मन पर हावी रहेंगे ही। जहाँ द्वन्द्व हैं वही वैषम्य का सघर्ष है । जहाँ सघर्ष है वहाँ शान्ति की कामना आकाश कुसुमवत् ही समझिए । द्वद्व सदा हर प्रकार की अशान्ति को जन्म देता है । अशान्ति व्यक्ति, परिवार, समाज, राष्ट्र तथा विश्व को फिर चैन से बैठने नही देती। उसकी समस्त शक्ति गलत दिशा की ओर बढ चलती है। एक बार गलत दिशा पकड लेने पर व्यक्ति अपने लक्ष्य बिन्दु से दूर हटता चला जाता है, फिर वह पतन की राह पकड लेता है। आज की अन्तर्राष्ट्रीय स्थिति भी कुछ ऐसी ही बनी हुई है। आज समस्त विश्व मानवता मूलक मूल्यो को बिसरा रहा है । परिणामत युद्ध के विस्फोटक बादल उमड-घुमड उठते है यदा-कदा। इस विस्फोटक वातावरण को समाप्त करने के लिए प्रत्येक व्यक्ति, परिवार, समाज और राष्ट्र को तपस्त्याग एव आत्म नियत्रण रूप सयम के चौखटे मे स्वय को फिट करना होगा।
चिन्तन-कण ] ७