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जिस प्रकार यात्रा प्रारम्भ करने
से पूर्व यात्री अपने वाहन मे बैठता है । प्रारम्भ करने से पूर्व
गन्तव्य स्थान का निश्चय करके ही किसी ऐसे ही हमारे लिए भी अपनी कर्म - यात्रा अपने-अपने गन्तव्य स्थान का निश्चय कर लेना आवश्यक है । क्योकि लक्ष्यहीन जीवन स्वच्छन्द रूप से सागर मे छोड़ी गई नाव के समान होता है । ऐसी नौका या तो भवर मे डूब जाएगी, या किसी चट्टान से टकराकर चूर-चूर हो जाएगी । लक्ष्यहीन जीवन भी इसी भाति कभी मफल नही हो सकता । लक्ष्य निश्चित करते समय इस बात का ध्यान रखिए कि केवल कल्पनाओ के स्वर्णिम सपनो मे ही लक्ष्य का निर्धारण न हो । अपनी योग्यता और क्षमता को ध्यान मे रखकर ही कोई कदम उठाएँ ।
६ | चिन्तन-कण